पर्यावरण को सांस लेने दें

वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. धरती लगातार गर्म हो रही है. पेरिस में धरती को बचाने की जद्दोजहद भी जारी है. विकासशील और विकसित देश इस ‘महापाप’ का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ने में लगे हैं. पर सच यह है कि ठीकरा चाहे कोई किसी के ऊपर फोड़े, दोष हम सबका […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2015 1:23 AM
वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. धरती लगातार गर्म हो रही है. पेरिस में धरती को बचाने की जद्दोजहद भी जारी है. विकासशील और विकसित देश इस ‘महापाप’ का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ने में लगे हैं. पर सच यह है कि ठीकरा चाहे कोई किसी के ऊपर फोड़े, दोष हम सबका है. इसमें किसी की भूमिका थोड़ी कम, किसी की थोड़ी ज्यादा है.
हम कहने को तो विकसित हो रहे हैं, लेकिन विकास का जो मार्ग हमने चुना है, उस पर विनाश की प्रतिछाया स्पष्ट नजर आ रही है. ग्लोबल वार्मिंग की जो चिंता आज विश्व के सामने खड़ी है, उसके जिम्मेदार हम खुद हैं. हमने ही अपनी जरूरतों के आगे प्राकृतिक संसाधनों का न केवल दोहन किया, बल्कि उसे नष्ट से भी नहीं चूके. प्रकृति से छेड़छाड़ के पहले हमने एक बार भी नहीं सोचा कि इसका असर क्या होगा. पिछले 100 साल में दुनिया में गजब की औद्योगिक क्रांति हुई. कल-कारखाने लगे, ऊंची-ऊंची बिल्डिंगें बनीं.
गांव शहर में तब्दील हो गये. हम सुख-सुविधाओं का उपभोग तो करने लगे, लेकिन यह नहीं देखा कि धरती कब तपने लगी. तापमान तेजी से बढ़ने लगा, समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया. विश्व भर में मौसम चक्र बदल गये. भूकंप, सूखा, बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं से लोग त्रस्त हैं. आधुनिकीकरण की होड़ में कल की जरूरत अब मजबूरी बन गयी है. रोटी भी मशीन से बनने लगे हैं.
विद्युत उपकरणों के बगैर कोई काम नहीं होता. किचन में फ्रिज, बाथरूम में गीजर, तो बेडरूम में एसी जरूरी है. नेता बिना काफिले के नहीं जाते. अब हल्ला मची है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. हम प्रकृति को प्रदूषित भी कर रहे हैं और बेहतर आबोहवा भी चाहते हैं. यह नहीं हो सकता. स्वच्छ हवा चाहिए, तो पर्यावरण को भी सांस लेने दें.
– विवेकानंद विमल, पाथरौल, मधुपुर

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