अपनी मर्यादा भूलते नेतागण

आजकल राज्यों में विधानसभा चुनावों को लेकर काफी गहमागहमी है. चुनावी भाषणों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल सारी पार्टियां कर रही हैं. संभवत: ऐसा कम ही देखने को मिलता है, जब किसी नेता के मुंह से आग न निकले. राज्य में जारी विधानसभा चुनाव अभी तीसरे चरण में ही पहुंचा है कि नेताओं ने राजनीतिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2013 5:08 AM

आजकल राज्यों में विधानसभा चुनावों को लेकर काफी गहमागहमी है. चुनावी भाषणों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल सारी पार्टियां कर रही हैं. संभवत: ऐसा कम ही देखने को मिलता है, जब किसी नेता के मुंह से आग न निकले. राज्य में जारी विधानसभा चुनाव अभी तीसरे चरण में ही पहुंचा है कि नेताओं ने राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए एक दूसरे के खिलाफ जहर उगलना आरंभ कर दिया है. जैसे-जैसे यह चुनाव अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो रहा है और नेतागण अपनी मर्यादा भूल कर जहर उगलने लगे हैं.

किसी पार्टी का नेता कांग्रेस के परिवारवाद पर निशाना साधते हुए गंगा में फेंक देने की बात कहता है, तो कोई छाती पर रोलर चलवाने का बयान दे डालता है. इस तरह की बयानबाजियों को राजनीतिक जानकार भी सही नहीं मानते. मुङो लगता है, जब नेताओं के पास तर्को और किये गये कार्यो के ब्योरे का अभाव हो जाता है, तो वे ऐसे कुतर्को पर उतर आते हैं. मैं पूछता हूं कि नेहरू-पटेल के समय भी चुनाव प्रचार हुआ करते थे, पर उस वक्त ऐसी बयानबाजी क्यों नहीं होती थी?

ऐसी बयानबाजी से देश की ही नहीं, लोकतंत्र की छवि भी खराब हो रही है. ऐसी ही बयानबाजियों से नेता लोकतंत्र पर उंगली उठाने का मौका दे देते हैं. इसे जनतंत्र में गिरावट के रूप में भी देखा जा सकता है. आज नेताओं के पास चुनाव के समय कहने को कुछ नहीं रहता. इस कारण ऐसा हो रहा है. जब तक देश के नेतागण देश और जनता की भलाई के बारे में नहीं सोचेंगे, तब तक इस देश का भला नहीं हो सकता. उन्हें इस वक्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, महंगाई, आतंकवाद जैसे अहम मुद्दों पर सोचना चाहिये. नेताओं को अपनी वाणी पर संयम बरतना होगा.
विमल शर्मा, रामगढ़ कैंट

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