माननीयों से विकास की आस बेमानी

झारखंड के पिछड़ेपन की कई वजहें हैं. जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली भी इनमें से एक है. एक ओर हमारे जनप्रतिनिधि राज्य को विशेष राज्य का दरजा दिलाने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं, जो राज्य के विकास के लिए जरूरी भी है और जायज भी. तो दूसरी ओर, सच्चई यह भी है कि हमारे सांसद अपनी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2013 4:13 AM

झारखंड के पिछड़ेपन की कई वजहें हैं. जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली भी इनमें से एक है. एक ओर हमारे जनप्रतिनिधि राज्य को विशेष राज्य का दरजा दिलाने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं, जो राज्य के विकास के लिए जरूरी भी है और जायज भी.

तो दूसरी ओर, सच्चई यह भी है कि हमारे सांसद अपनी विकास निधि में उपलब्ध राशि खर्च नहीं कर पा रहे हैं. बड़ी राशि लैप्स हो जाती है, लेकिन इस ओर शायद इनका ध्यान नहीं है.

राज्य का कोई सांसद विकास मद में उपलब्ध पूरी राशि का उपयोग नहीं कर पाया है. राज्य में 14 सांसदों के फंड का 30 फीसदी अब तक खर्च नहीं हो पाया है. विदित हो कि 2009 में चुने गये इन सांसदों का कार्यकाल खत्म होने को है. लोकसभा चुनाव की घोषणा कुछ ही महीनों में होनेवाली है.

जाहिर सी बात है कि ऐसे सुस्त जनप्रतिनिधियों से राज्य के विकास की उम्मीद लगाये रखना बेमानी साबित होगा. संताल परगना की बात करें, तो गोड्डा के सांसद निशिकांत दूबे इस मामले में सबसे पीछे हैं. दुमका सांसद शिबू सोरेन के फंड में से 3.54 करोड़ रुपये की राशि खर्च होनी शेष है.

राजमहल सांसद देवीधन बेसरा को सबसे कम राशि मिली, लेकिन वह उतना भी खर्च नहीं कर पाये. यह हमारे जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली का एक नमूना भर है. सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने और विकास के लिए धनराशि की कमी का रोना रोने से विकास नहीं हो जाता है.

इसके लिए कड़ी मेहनत और जनता के प्रति संवेदनशीलता दर्शाने की जरूरत होती है, जिसका हमारे जनप्रतिनिधियों में अभाव दिखता है. यह सही है कि झारखंड को विशेष राज्य का दरजा मिलना चाहिए. आदिवासियों के हितों के मद्देनजर गठित इस राज्य में गरीबों की संख्या काफी अधिक है. आज हम कई क्षेत्रों में अपने पड़ोसी राज्यों से पीछे चल रहे हैं. जिन राज्यों का गठन हमारे साथ हुआ, आज वे विकास में हमसे आगे निकल गये हैं. झारखंड में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है. इससे राज्य को काफी आय होती है. इसलिए, सबसे पहली जरूरत इस बात की है कि हमें उपलब्ध धनराशि तथा केंद्रीय आर्थिक मदद का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करना होगा. तभी हम और अधिक केंद्रीय मदद मांगने और पाने के अधिकारी बन सकते हैं.

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