एयर इंडिया का निजीकरण कीजिए
।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री एक फॉर्मूला है– उद्यमी बड़ा और सरकार छोटी. मनमोहन सिंह की सरकार ने निजीकरण के स्थान पर विनिवेश की नीति को लागू किया है. विनिवेश में सरकारी कंपनी के कुछ शेयरों को बेच दिया जाता है. कंपनी का नियंत्रण मंत्री और सचिव महोदय के हाथ में ही रहता है. […]
।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
अर्थशास्त्री
एक फॉर्मूला है– उद्यमी बड़ा और सरकार छोटी. मनमोहन सिंह की सरकार ने निजीकरण के स्थान पर विनिवेश की नीति को लागू किया है. विनिवेश में सरकारी कंपनी के कुछ शेयरों को बेच दिया जाता है. कंपनी का नियंत्रण मंत्री और सचिव महोदय के हाथ में ही रहता है.
देश की राष्ट्रीय उड्डयन कंपनी एयर इंडिया पिछले कई वर्षो से घाटे में चल रही थी. लेकिन, इस वर्ष अप्रैल के बाद से उसकी स्थिति में सुधार हुआ है. उड्डयन बाजार मे कंपनी का हिस्सा 16.2 प्रतिशत से बढ़ कर 19.1 प्रतिशत हो गया है. इस सुधार का श्रेय कंपनी के वर्तमान प्रमुख रोहित नंदन को जाता है.
2005 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के बाद कंपनी की समस्याएं शुरू हुई थीं. विलय के बाद कर्मचारियों ने हड़ताल की थी, जिससे कंपनी की साख पर बट्टा लगा था. एरोप्लेन खाली उड़ने लगे थे. इससे निबटने के लिए तब के मैनेजमेंट ने भाड़े में भारी कटौती की थी.
परंतु कर्मचारियो में असंतोष व्याप्त होने के कारण इससे टिकट की बिक्री में ज्यादा सुधार नहीं हुआ. बल्कि भाड़ा घटाने से कंपनी की वित्तीय हालत और बिगड़ गयी. वर्तमान प्रमुख रोहित नंदन ने भाड़ा घटाने के स्थान पर सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास किया है. जिसके फलस्वरूप कंपनी की स्थिति में सुधार दिख रहा है. विचारणीय मुद्दा है कि यह सुधार टिकाऊ है अथवा क्षणिक?
एयर इंडिया के घाटे में चलने के दो कारण थे. एक कारण 2007 में इंडियन एयरलाइन्स एवं एयर इंडिया का विलय था. दोनों पूर्व कंपनियों का चरित्र अलग–अलग था, जैसे चाय और कोकाकोला.
इंडियन एयरलाइन्स छोटे जहाज एवं कम दूरी पर उड़ान भरती थी, जबकि एयर इंडिया बड़े जहाज और लंबी दूरी की उड़ान भरती थी. इंडियन एयरलाइन्स के पायलटों के वेतन कम थे. विलय के बाद इंडियन एयरलाइन्स के पायलटों ने बराबर वेतन की मांग की. इसे मंजूर न किये जाने पर असंतोष व्याप्त हो गया. दूसरा कारण सरकारी कंपनियों की मौलिक अकुशलता है.
नेताओं द्वारा एयर इंडिया पर दबाव दिया जाता है कि उनके शहर से विमान सेवा शुरू की जाये. इन राजनीतिक रूटों पर कंपनी को घाटा लगता है. सरकारी कर्मियों का मनमौजी स्वभाव भी आड़े आता है. सुबह एक फ्लाइट के विलंब होने से पूरे दिन विलंब का सिलसिला जारी रहता है. कंपनी के बड़े निर्णयों को उड्डयन मंत्रलय के सचिव की अनुमति से ही लिया जाता है. इसमें देर होती है.
वर्तमान प्रमुख ने इस राजनीतिक समस्या को संभाल लिया है और ध्यान कंपनी की कार्यकुशलता मे सुधार लगाने की ओर दिया है. परंतु इन सुधारों का कोई महत्व नहीं. ये सुधार किसी एक अधिकारी के व्यक्तिगत समीकरणों से जनित है. कंपनी के सरकारी चरित्र की मूल समस्या पूर्ववत बनी हुई है. जैसे मौसम अच्छा होने पर कैंसर का रोगी उठ कर चल पड़े, तो उसे उपचार नहीं कहा जाता है.
यह स्थिति दूसरे देशों की एयरलाइनों में भी व्याप्त है. प्रश्न उठता है कि फिर इंडियन ऑयल एवं स्टेट बैंक आफ इंडिया जैसी दूसरी सरकारी कंपनियां सफल क्यों हैं? दरअसल, इनकी सफलता का प्रमुख कारण एकाधिकार है. जैसे स्टेट बैंक की शाखाओं का पूरे देशभर में जाल बिछा हुआ है.
मैं दिल्ली में रहता था. फिर उत्तराखंड में रहने लगा. यहां मेरे गांव के पास स्टेट बैंक की ही अकेली ब्रांच थी. मजबूरन मुङो दिल्ली में अपना खाता स्टेट बैंक में ही खुलवाना पड़ा, ताकि मनी ट्रांसफर आसानी से हो सके. दरअसल, सरकारी कंपनी के सफल होने की संभावना नगण्य है. इनका मूल चरित्र अकुशलता और आरामगर्दी का होता है.
वाजपेयी सरकार ने इस बात को सही समझा था. अरुण शौरी के नेतृत्व में कई अकुशल सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर दिया गया था. एक फॉर्मूला है उद्यमी बड़ा और सरकार छोटी. मनमोहन सिंह की सरकार ने निजीकरण के स्थान पर विनिवेश की नीति को लागू किया है.
विनिवेश में सरकारी कंपनी के कुछ शेयरों को बेच दिया जाता है. कंपनी का नियंत्रण मंत्री और सचिव महोदय के हाथ में ही रहता है. ऊपर से विनिवेश से मिली रकम को खर्च करने का मौका इन्हें मिलता है. सरकार का दायरा छोटा करने के स्थान पर विनिवेश की रकम को खर्च करने में सरकार के दायरे को बड़ा कर दिया है.
राजनीति को तत्काल त्याग कर एयर इंडिया समेत तमाम सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर देना चाहिए. मिली रकम का नये जरूरी क्षेत्र में निवेश करना चाहिए. जहां रिस्क अथवा पूंजी की कमी के कारण निजी उद्यमी बढ़ने का साहस न कर सकें, वहां मात्र सरकार को निवेश करना चाहिए.
उड्डयन जैसे क्षेत्र में निजी उद्यमी सक्षम हो चुके हैं. इनसे सरकार को पीछे हट कर नये क्षेत्र में उद्यमियों के प्रवेश का रास्ता खोल देना चाहिए.
आनेवाले समय में उड्डयन के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा गरमा सकती है. टाटा समूह ने एयर एशिया नाम से नयी कंपनी बनायी है, जो शीघ्र घरेलू सेवाएं शुरू कर देगी. इससे उड्डयन क्षेत्र में ओवर क्राउडिंग होगी और एयर इंडिया समेत दूसरी घरेलू कंपनियों को पुन: घाटा होगा. अत: वर्तमान विशेष परिस्थितियो में एयर इंडिया की सुधरती स्थिति से भ्रमित नहीं होना चाहिए और प्रॉफिट के इस दौर मे कंपनी का निजीकरण कर देना चाहिए.