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विभाग को उल्लुओं की जरूरत है!

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार लीला बाबू रिटायर हो रहे हैं. मातहत पुलकित हैं कि एक निठल्ले और तुगलकी अफसर से पिंड छूट रहा है. विदाई की इस सुखद बेला को यादगार बनाने के लिए राजसी प्रबंध किये हैं. एक-दूसरे की टांग-खिंचाई में वक्त बरबाद करने में चतुर तमाम अधिकारी-कर्मचारी विभाग के इतिहास में पहली बार […]

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

लीला बाबू रिटायर हो रहे हैं. मातहत पुलकित हैं कि एक निठल्ले और तुगलकी अफसर से पिंड छूट रहा है. विदाई की इस सुखद बेला को यादगार बनाने के लिए राजसी प्रबंध किये हैं. एक-दूसरे की टांग-खिंचाई में वक्त बरबाद करने में चतुर तमाम अधिकारी-कर्मचारी विभाग के इतिहास में पहली बार एकजुट हैं. बिना काम किये शान से 38 साल काटनेवाले इस अद्भुत पुरुष के साथ सेल्फियाें की होड़ है.

रस्म के मुताबिक, तमाम वक्ताओं ने लीला बाबू को हरदिल अजीज बताया. उनकी शान में कसीदे पढ़े गये. एक ने उन्हें कानून का सर्वकालीन ज्ञाता बताया. दूसरा इनसाइक्लोपीडिया बता गया. तीसरे को वे इनसानियत की जिंदा मिसाल लगे. चौथे की दृष्टि में फाइलों पर अंकित उनकी टिप्पणियों में प्रयुक्त शब्द आनेवाली नस्लों के लिए नजीर होंगे. पांचवें का गला भर आया. एक विकराल शून्य उत्पन्न हुआ है. इसे भरने के लिए स्वयं लीला बाबू को ही पुनर्जन्म लेना पड़ेगा!

यह फर्जीनामा सुन कर सबका हंसी के मारे बुरा हाल है. कईयों के पेट दुखने लगे. समारोह के अंत में आशीष वचन हेतु संबोधन में विभाग के मुखिया जी बड़े भावुक हो गये. हमें तो लीला बाबू के बारे में ऐसी-वैसी रिपोर्ट मिली थी. लेकिन, आप लोगों का लीला बाबू के प्रति अपार स्नेह देख कर और उनके गुणों की गाथा सुन कर हतप्रभ हूं, साथ में गद्गद् भी. अतः उनकी अमूल्य सेवाओं का लाभ उठाने के दृष्टिगत सरकार उन्हें एक साल का सेवा विस्तार देने का फैसला करती है.

ऐसी घोषणाओं पर आमतौर पर अति प्रसन्न होकर गगनभेदी करतल ध्वनि होती है. परंतु यहां हरेक को सांप सूंघ गया. चहुं ओर सन्नाटा खिंच गया. गहरी नीरवता व्याप्त हो गयी. कुछेक पछाड़ खाकर मूर्छित होते-होते बचे. बंदे के बगल में खड़े निर्बल हृदय कर्मठ बाबू तो लकवाग्रस्त हो जाते, यदि उन्होंने ससमय जानबचाऊ गोली जीभ के नीचे न रख

ली होती.

निकम्मे व चापलूस अफसर से छुट्टी पाने की खुशी में मनाया जा रहा जश्न मातम में तब्दील हो जाता, यदि मौके की नजाकत को भांप कर समझदार आयोजक ने स्थिति न संभाली होती. अब यह जश्न लीला जी की विदाई का नहीं है, अपितु उनके सेवा विस्तार की खुशी में है. इसका सारा खर्चा लीला बाबू वहन करेंगे.

अब मूर्छित होने की बारी लीला बाबू की थी. खर्चा उठाने की उनसे कोई सहमति नहीं ली गयी थी. परंतु ‘चमड़ी जाये, दमड़ी बची रहे’ के सिद्धांत के अनुयायी लीला बाबू के सामने दूसरा विकल्प भी नहीं था.

बाद में मुखिया जी को वास्तविकता से जब अवगत कराया गया, तो वे बोले : आप लोग नहीं जानते हैं कि लीला बाबू क्या किये हैं? वह नेता जी के दूर-दराज के बड़के साले का जुगाड़ ले आये हैं. विभाग को भी ऐसे ही उल्लुओं की जरूरत है. आजकल फैसले लेनेवाला फंसता है, फैसले नहीं लेनेवाला नहीं.

सूबे को रोशन करनेवाले विभाग के मुखिया की इस नीयत को जान कर रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े तमाम निठल्ले बाबू-अफसर खुश हैं और कर्मठ बाबू-अफसर किंकर्तव्यविमूढ़ व हताश.

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