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शिक्षा की बदहाली

हमारे देश में हर तरह की परीक्षाओं और भर्तियों मे धांधली, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की खबरें अब आम हो चली हैं. लेकिन, आगरा विश्वविद्यालय में शिक्षा स्नातक (बीएड) की परीक्षा में हुआ घपला देश के शैक्षणिक इतिहास में न सिर्फ अभूतपूर्व है, बल्कि कल्पना से भी परे है. आगरा के भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की […]

हमारे देश में हर तरह की परीक्षाओं और भर्तियों मे धांधली, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की खबरें अब आम हो चली हैं. लेकिन, आगरा विश्वविद्यालय में शिक्षा स्नातक (बीएड) की परीक्षा में हुआ घपला देश के शैक्षणिक इतिहास में न सिर्फ अभूतपूर्व है, बल्कि कल्पना से भी परे है.

आगरा के भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीएड परीक्षा में कुल 12,800 परीक्षार्थी पंजीकृत हुए थे, लेकिन कुल उत्तीर्ण छात्रों की संख्या 20,000 है. सात हजार से अधिक बिना नामांकन के परीक्षार्थियों के पास होने का मामला तब सामने आया, जब परिणाम तैयार कर रही निजी संस्था ने आपत्ति जतायी कि उसके पास तो महज 12,800 परिक्षार्थियों की सूचनाएं हैं.

बहरहाल, कुलपति ने परिणामों की घोषणा पर रोक लगाते हुए इस धोखाधड़ी की जांच के आदेश दे दिये हैं. अब सवाल यह उठता है कि पूरी प्रक्रिया में विश्वविद्यालय का ध्यान इस फर्जीवाड़े पर नहीं गया. इससे भी गंभीर सवाल यह है कि विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक कर देने से लेकर फर्जी डिग्री बेचने के अनगिनत मामलों के सामने आने के बावजूद हमारी शिक्षण संस्थाएं इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाने में असफल क्यों हैं.

अभी बिहार के सबसे बड़े विश्वविद्यालय मगध विश्वविद्यालय के कॉलेजों के 44 प्रधानाचार्यों में से 34 की नियुक्ति पर जांच चल रही है. इनमें से 12 प्रधानाचार्य अदालत के आदेश के बाद सेवा से हटा भी दिये गये हैं. कुछ समय पहले अखिल भारतीय मेडिकल परीक्षा में प्रश्न पत्रों के लीक होने पर सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा था. मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले की जांच चल ही रही है. ऐसे मामलों की फेहरिस्त बहुत लंबी है.

बार-बार यह साबित हो चुका है कि पूरे देश में संगठित शिक्षा माफिया का संजाल फैला हुआ है, जिसे राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है. परीक्षाएं पास कराने से लेकर पीएचडी की थिसिस लिखने-लिखाने का धंधा खुलेआम चल रहा है. आश्चर्य की बात नहीं है कि वैश्विक स्तर पर भारत के गिने-चुने संस्थानों की ही गिनती होती है और अधिकतर शिक्षित युवा समुचित रोजगार के लायक ही नहीं हैं.

ऐसी बदहाल और भ्रष्ट शिक्षा के बूते हम ज्ञान और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई जगह नहीं बना सकेंगे. अब यह जरूरी हो गया है कि सरकारें और समाज आत्ममंथन करते हुए इस चिंताजनक और खतरनाक अव्यवस्था में त्वरित सुधार के लिए प्रयासरत हो, अन्यथा हमारा भविष्य निश्चित रूप से अंधकारमय हो जायेगा, जिससे उबर पाना असंभव होगा.

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