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एक सफल यात्रा

विभिन्न आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक कारकों की पृष्ठभूमि में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की भारत यात्रा कई अर्थों में महत्वपूर्ण रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही इस दौरे को ‘ऐतिहासिक और संबंधों में उल्लेखनीय मोड़’ की संज्ञा दी है. चीन, दक्षिण एवं उत्तरी कोरिया तथा रूस के साथ जापान की निरंतर बढ़ती […]

विभिन्न आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक कारकों की पृष्ठभूमि में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की भारत यात्रा कई अर्थों में महत्वपूर्ण रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही इस दौरे को ‘ऐतिहासिक और संबंधों में उल्लेखनीय मोड़’ की संज्ञा दी है. चीन, दक्षिण एवं उत्तरी कोरिया तथा रूस के साथ जापान की निरंतर बढ़ती असहजता और उसकी आंतरिक अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति में जहां भारत मजबूत सहयोगी की भूमिका निभा सकता है, वहीं भारत के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम तथा वृहत परियोजनाओं के लिए जापानी सहभागिता अहम है.
दोनों देशों के साझा बयान में कहा गया है कि भारत और जापान ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति एवं समृद्धि के लिए वैश्विक और रणनीतिक सहभागिता’ की ओर अग्रसर हैं. इस घोषणा से स्पष्ट है कि भारत के सामुद्रिक हितों का विस्तार हिंद महासागर तक सीमित न होकर अब प्रशांत महासागर में हो रहा है. इस घोषणा में सीधे शब्दों में चीन का उल्लेख नहीं है, पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आवाजाही की स्वतंत्रता, विभिन्न देशों की संप्रभुता, लोकतंत्र, मानवाधिकारों की बहाली आदि के उल्लेख प्रछन्न रूप से आक्रामक चीनी दखल का प्रतिकार ही हैं.
रक्षा क्षेत्र में समझौता दोनों देशों की निकटता के पुख्ता होते जाने का एक और बड़ा संकेत है. इन पहलों के दीर्घकालिक राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक परिणाम हो सकते हैं. भारत में बुलेट ट्रेन एवं अन्य रेल परियोजनाओं में 14.7 बिलियन डॉलर के भारी-भरकम निवेश तथा वीजा और आयात-निर्यात के अन्य समझौते ठोस आर्थिक सहयोग के आधार बन सकते हैं.
लांकि, इस दौरे में परमाणु समझौता भी मुख्य विषय था, लेकिन इस दिशा में बहुत उल्लेखनीय प्रगति के आसार नहीं थे, क्योंकि प्रधानमंत्री अबे पर अपने देश के संबंधित कानूनों की बंदिशें थीं. फिर भी, यह बड़े संतोष की बात है कि दोनों देश इस मसले पर सहयोग के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गये हैं. इसे एक प्रगतिशील और सकारात्मक कदम माना जाना चाहिए, क्योंकि अभी कम-से-कम जापान से तकनीक हस्तांतरण की राह खुली है.
इस संदर्भ में अधिक चिंता इस वजह से भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अन्य बेहतर विकल्पों पर भी ध्यान दे रहा है और पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के बाद उन पर तेजी से काम होने की उम्मीद है. बहरहाल, क्षेत्रीय सहयोग और निवेश के मोरचे पर जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, वह दोनों देशों के लिए बेहतर भविष्य का आधार बन सकती हैं.

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