झांसा देना भूल सुधार नहीं होता

एमजे अकबर राज्यसभा सांसद, भाजपा अजीबो-गरीब स्थिति हमारी राजनीति से उतनी अलग नहीं है, जितनी हमारी चाहत हो सकती है. परंतु, ऐसे मौके आते हैं, जब आरोप या बचाव में किसी पार्टी का स्पष्टीकरण हद से इतना बाहर चला जाता है कि उसे सिर्फ अवमानना ही माना जा सकता है, जो कि अदालत की नहीं, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2015 6:37 AM
एमजे अकबर
राज्यसभा सांसद, भाजपा
अजीबो-गरीब स्थिति हमारी राजनीति से उतनी अलग नहीं है, जितनी हमारी चाहत हो सकती है. परंतु, ऐसे मौके आते हैं, जब आरोप या बचाव में किसी पार्टी का स्पष्टीकरण हद से इतना बाहर चला जाता है कि उसे सिर्फ अवमानना ही माना जा सकता है, जो कि अदालत की नहीं, बल्कि लोगों की भी होती है.
शनिवार को अंगरेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने पहले पन्ने पर एक असाधारण रिपोर्ट छापी है. इसने दो वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का बयान छापा है कि संसद के दोनों सदनों में चार दिनों से चल रहा हंगामा ‘नेशनल हेराॅल्ड’ मामले में अदालत द्वारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर मुकदमा चलाने से संबंधित नोटिस भेजने से संबंधित नहीं है, जिसमें उस बंद हो चुके अखबार की अनुमानित दो हजार करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों पर काबिज होने के लिए मात्र 50 लाख रुपये के भुगतान के कथित तौर पर हेराफेरी का आरोप है.
इन नेताओं का दावा है कि उन्होंने अपने सांसदों को (सभापतियों के लगातार डांटने के बावजूद) हो-हल्ला मचाने की अनुमति पुराने मुद्दों के कारण दी है.
मैं कांग्रेस के उन दो वरिष्ठ नेताओं का नाम उनकी दयनीय हालत के प्रति सहानुभूति के कारण यहां उल्लिखित नहीं कर रहा हूं.
वे अपनी कही हुई बात पर भी सही मायने में भरोसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वे राजमहल के आदेश के अनुसार बोल रहे हैं. वे इस बात से भली-भांति अवगत हैं कि संसद अदालत के उस फैसले से पहले सामान्य रूप से चल रही थी, जिसमें कहा गया है कि नेशनल हेराॅल्ड मामले में मुकदमा चलाने के पर्याप्त आधार हैं और अदालत ने इसके मुख्य आरोपियों को हाजिर होने का निर्देश जारी किया.
दरअसल, नेपाल को लेकर संसद के उच्च सदन राज्यसभा में बहुत अच्छी बहस चल रही थी, जिसने सदन को पुराने दिनों की यादें ताजा करा दी थी कि उसे इस मामले में क्या उचित पहल करनी चाहिए.
विपक्ष अपनी पूरी ताकत के साथ सरकार पर वार कर रहा था और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने न सिर्फ सभी बिंदुओं का जवाब दिया, बल्कि इस गंभीर मुद्दे पर हमारी स्थिति को लेकर चल रहे कयासों पर भी विराम लगा दिया था. लोकतंत्र में संसद का यही मतलब होता है और लोकतंत्र को इसी तरह व्यवहार में लाया जाना चाहिए. कांग्रेस ने भी इस बहस में हिस्सा लिया था.
शनिवार को गोवा के अखबारों में छपी सुर्खी में वह सब कह दिया गया है, जो कहा जाना चाहिए : ‘नेशनल हेराल्ड : कांग्रेस ने चौथे दिन भी राज्यसभा बाधित रखा’. जिस व्यक्ति ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी की समस्या नेशनल हेराॅल्ड अखबार का मामला ही है, वह और कोई नहीं, बल्कि खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ही हैं. राहुल गांधी ने लगातार सरकार पर ‘100 फीसदी बदले की भावना’ से काम करने का आरोप लगाया है.
हर बार इस अमर्त्य मुहावरे का प्रयोग करते समय उनमें गुस्से का भाव नजर आता रहा है. हालांकि, स्वाभाविक रूप से उन्होंने कभी इस आरोप को स्पष्ट करने की जहमत नहीं उठायी, क्योंकि उनके पास इसका कोई स्पष्टीकरण है भी नहीं.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग और संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि इस मामले में सरकार ने किसी को भी एक भी नोटिस नहीं भेजा है. यह तो अदालत ने डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की व्यक्तिगत शिकायत पर संज्ञान लिया और इस प्रक्रिया में कुछ कठोर टिप्पणियां भी की.
यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अदालतों ने हमेशा सिर्फ सुब्रह्मण्यम स्वामी की शिकायतों पर इसी गंभीरता के साथ नहीं स्वीकार किया है, बल्कि वे हर मामले को उसके गुण के आधार पर परखती हैं और अदालतों द्वारा ऐसा ही किया जाना चाहिए. राहुल गांधी द्वारा अदालतों पर पक्षपाती होने के लगातार आरोप न्यायिक प्रणाली की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाने जैसा है.
कांग्रेस को समझना चाहिए था कि वह इस साफ-साफ भ्रष्टाचार के आरोप पर पहले ही दिन अलग-थलग पड़ जायेगी, जिसके आधार पर वह संसद को बाधित करने की जबरदस्ती कर रही है.
कोई भी विपक्षी दल उसके समर्थन में सामने नहीं आया. बिहार में उसके सहयोगी जद(यू) और राजद ने भी दूरी बनाये रखा. तृणमूल कांग्रेस इस उम्मीद में कि पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वामपंथी दलों से गंठबंधन नहीं करेगी, कुछ दावं-पेंच खेल रही है, पर उसने भी अपने आंख-कान खुले और अपना सिर नीचे रखा है. कोई भी भ्रष्टाचार के इस खुले या कथित मामले का बचाव करता हुआ नहीं दिखना चाह रहा है.
राजनीतिक दलों को तभी सफलता मिलती है, जब वे जनता के रुख को सही रूप में समझ पाते हैं.सभी को यह अहसास है कि लोग कांग्रेस के तर्कों से सहमत नहीं हैं. कांग्रेस को यह बात समझने में देर लगी, क्योंकि वह एक वंश के प्रति निष्ठा की बंधक है. एक प्रसिद्ध उक्ति है कि राजनीति में सप्ताह भर का समय बहुत होता है. इस सप्ताह कांग्रेस राष्ट्रीय बहस को फिर से उच्च स्तर पर होनेवाले भ्रष्टाचार और एक खास परिवार की इच्छा एवं आवश्यकता के प्रति एक राष्ट्रीय पार्टी के समर्पण पर ले गयी.
इस बारे में कोई भी आश्वस्त नहीं है कि कांग्रेस सोमवार को संसद में कैसा व्यवहार करेगी. यह संभव है कि पार्टी के कट्टरपंथी कुछ पुराने आरोपों पर कार्यवाही में बाधा डालने की प्रक्रिया को जारी रखने पर जोर दें.
लेकिन, अद्भुत दुनिया में एलिस के होने का राजनीतिक दौर बहुत पहले गुजर चुका है. उस शानदार कथा की रानी की तरह आप मनचाहे मतलब के शब्द नहीं गढ़ सकते. लोकतंत्र में जनता की अदालत सबसे ताकतवर अदालत होती है और कांग्रेस वहां अपना पक्ष हार चुकी है.
मतदाताओं को पता है कि कांग्रेस ने संसद बाधित कर उन महत्वपूर्ण विधेयकों को पास होने से रोका है, जो गरीबों, अनुसूचित जातियों, आदिवासियों और वेतनभोगी वर्ग के लिए लाभदायक हो सकते थे. कांग्रेस ने एक ऐसे मसले पर बेतुका रवैया अपनाया है, जिसके निपटारे की जिम्मेवारी राजनीतिक वर्ग पर नहीं, बल्कि न्यायिक प्रणाली पर छोड़ देनी चाहिए. कांग्रेस को समझना चाहिए कि झांसा देना भूल सुधार करना नहीं है.

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