बाजार में कारोबारी संवेदनहीनता
गंभीरता से गौर करें, तो समझ आता है कि भ्रष्टाचार तत्काल मुनाफा देता है, किंतु इनसान की संवेदना, सहयोग और समर्पण जैसे मूल्य छीन लेता है. तात्कालिक मुनाफे के चक्कर में आदमी बहुत कुछ खो बैठता है. उसने इस दौरान क्या खोया, इसकी समझ उसे तब आती है, जब बहुत बड़ा नुकसान हो चुका होता […]
गंभीरता से गौर करें, तो समझ आता है कि भ्रष्टाचार तत्काल मुनाफा देता है, किंतु इनसान की संवेदना, सहयोग और समर्पण जैसे मूल्य छीन लेता है. तात्कालिक मुनाफे के चक्कर में आदमी बहुत कुछ खो बैठता है. उसने इस दौरान क्या खोया, इसकी समझ उसे तब आती है, जब बहुत बड़ा नुकसान हो चुका होता है. मुनाफे के बगैर व्यापार की बात सोचना बेमानी है, लेकिन नैतिकता को ताक पर रख कर िसर्फ मुनाफा कमाना भी गुनाह है. बाजार नुकसान कम उठाना चाहता है.
सो, उपभोक्ता की जेब पर डाका डालता है. जब सामाजिक सरोकार से जुड़ी जिम्मेदारी व्यापारियों पर डाली जाती है, तो उसे यह बोझ लगने लगती है. सदैव अपनी जेब भरने के बारे में सोचनेवाले इस जिम्मेदारी से दूर भागना शुरू कर देते हैं. किसी बाजार को काला या सफेद कहना उचित नहीं है, क्योंकि हर बाजार के व्यापारी का उद्देश्य एक होता है, ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना.
-सतीश कुमार सिंह, रांची