ऐसा ही भविष्य चाहते हैं हम!
बाल श्रम निषेध कानून होने के बावजूद करोड़ों बच्चे देश के कोने-कोने में कहीं न कहीं काम कर रहे हैं. किसी होटल में, दुकान, कारखाना या अन्य प्रतिष्ठानों में. विडंबना ही है कि जिस देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, देश का भविष्य बताया जाता है, बाल दिवस पर उनके अधिकार […]
बाल श्रम निषेध कानून होने के बावजूद करोड़ों बच्चे देश के कोने-कोने में कहीं न कहीं काम कर रहे हैं. किसी होटल में, दुकान, कारखाना या अन्य प्रतिष्ठानों में. विडंबना ही है कि जिस देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, देश का भविष्य बताया जाता है, बाल दिवस पर उनके अधिकार के लिए देश के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वही बच्चे उपेक्षित हैं. सच यह है कि बड़ी-बड़ी बात करनेवाले कई लोगों की कार ऐसा ही कोई बच्चा धो रहा होता है या उनके घरों में बर्तन की सफाई कोई बच्चा या बच्ची करता है.
सरकारें कानून बना कर अपने काम की इितश्री कर लेती हैं. उन कानूनों पर अमल हो रहा है या नहीं, इस तरफ कभी उनका ध्यान नहीं जाता. सवाल है कि इन नन्हे-मुन्नों से उनका बचपन छीनने का िकसी को क्या हक है? जिस देश में जानवरों के भी अधिकार की बात होती है, वहां बाल अधिकारों का हनन निश्चित ही शर्मिंदगी की बात है.
स्कूल जाने और खेलने-कूदने की उम्र में दफ्तर-दफ्तर घूम कर चाय पहुंचाना, सड़क पर कारों को साफ करना या किसी के घर में खाना पकाना, बर्तन साफ करना आदि काम करेंगे, तो उन बच्चों का भविष्य कैसे सुधरेगा. इसके जिम्मेदार कौन हैं? हमारा इनके प्रति कोई दायित्व नहीं? हम अपने अधिकार के लिए तो लड़ जाते हैं, पर कर्तव्यों को भूल जाते हैं.
जब तक यह हालत रहेगी, कितने ही कानून बना लें, बच्चों की दशा नहीं सुधरेगी. बचपन कच्ची मिट्टी के बर्तन के समान होता है. उसे हम जिस आकार में चाहें, ढाल सकते हैं. यदि हम अपने आसपास रहनेवाले कम से कम एक बच्चे का बचपन सुधार कर उसे अच्छी शिक्षा देने का प्रयत्न करें, तो भारत की तसवीर बदल सकती है.
-कन्हाई, संघमित्रा कॉलेज, रांची