जब शिक्षक खुद ही फेल हो रहे हों
बिहार सरकार द्वारा नियोजित शिक्षकों की ली गयी हाल की दक्षता परीक्षा के परिणाम में करीब एक चौथाई शिक्षक स्वयं फेल हो गये हैं. स्पष्ट है कि शिक्षक होने की उनकी योग्यता संदिग्ध है. संभव है कि अयोग्यता के बावजूद सिस्टम की उदारता का लाभ लेते हुए ऐसे लोग शिक्षक बनने में कामयाब हो गये […]
बिहार सरकार द्वारा नियोजित शिक्षकों की ली गयी हाल की दक्षता परीक्षा के परिणाम में करीब एक चौथाई शिक्षक स्वयं फेल हो गये हैं. स्पष्ट है कि शिक्षक होने की उनकी योग्यता संदिग्ध है. संभव है कि अयोग्यता के बावजूद सिस्टम की उदारता का लाभ लेते हुए ऐसे लोग शिक्षक बनने में कामयाब हो गये होंगे. पर, सवाल यह है कि जो शिक्षक स्वयं अपने पेशे के लिए जरूरी पात्रता के स्वामी न हों, वे अपने छात्रों के व्यक्तित्व में कैसी पात्रता भर रहे होंगे?
इनके शिष्य छात्रों की पात्रता कैसी होगी? क्योंकि दक्षता परीक्षा के परिणाम से यह बात साफ हो गयी है कि फेल हुए शिक्षक पढ़ाने के लिए दक्ष नहीं थे. यह भी नहीं कि उन्हें अपनी दक्षता का अंदाजा नहीं होगा. फिर भी उन्हें सरकार व सिस्टम की उदारता का लाभ मिल गया. इस उदारता में अब भी कोई कमी नहीं दिख रही. कहा जा रहा है कि जो दक्षता परीक्षा में फेल कर गये हैं, उन्हें पास करने का एक और मौका दिया जायेगा. यह उदारता ही तो है. पर, जो शिक्षक बनने चले थे या बनने जा रहे हैं, उन्हें एक शिक्षक के रूप में अपने नैतिक व सामाजिक दायित्वों का भी ध्यान रखना चाहिए.
उन्हें ध्यान रखना होगा कि कहीं उनकी कमियों का भोग भविष्य की पीढ़ियों को न भोगना पड़े. इन भावी पीढ़ियों में दक्ष नहीं पाये जा रहे शिक्षकों की संतानें भी होंगी ही. वैसे ही देश में शिक्षा-दीक्षा की हालत दयनीय है. घोर दयनीय. ऊपर से, अगर अयोग्य लोग सिस्टम पर बोझ बनते गये, तो पहले ही शिक्षा में गुणवत्ता की कमी के चलते भारी नुकसान उठा चुका समाज मुश्किल के ऐसे भंवर में फंसता जायेगा कि इसे उबार पाना और मुश्किल होता जायेगा. आज शिक्षा के आईने में व्यक्ति से लेकर वस्तु तक, सबका प्रतिबिंब धुंधला दिख रहा है. जिधर देखो, उधर ही गड़बड़ी.
शायद ही कहीं कुछ शत-प्रतिशत ठीक-ठाक दिख जाये. यह सब कुछ दिन या कुछ महीने अथवा कुछ वर्षो में हुई गड़बड़ी का नतीजा तो नहीं ही है. स्पष्ट है कि हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामले में लंबे समय से समझौतावादी रुख अपनाते रहे हैं. अब और विलंब किये बिना ही हमें अपने सिस्टम को दुरुस्त कर सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षक चाहे किसी भी जाति, धर्म व कोटि का हो, वह सुपात्र जरूर हो. उसमें पात्रता की कमी किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए. ऐसा होने पर ही भविष्य में बेहतरी की कुछ उम्मीद जग सकेगी.