17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नि:शक्तों के उत्थान के हों सार्थक प्रयास

भारत में नि:शक्तों की स्थिति संसार के अन्य देशों की तुलना में अच्छी नहीं है. कुल जनसंख्या के मुट्ठी भर की यह आबादी हर दृष्टि से उपेक्षित है. विदेशों में नि:शक्तों के लिए बीमा की व्यवस्था है, तािक कोई परेशानी न हो. वहीं भारत में तरस खाकर सरकारी नौकरियों में इनके िलए तीन प्रतिशत का […]

भारत में नि:शक्तों की स्थिति संसार के अन्य देशों की तुलना में अच्छी नहीं है. कुल जनसंख्या के मुट्ठी भर की यह आबादी हर दृष्टि से उपेक्षित है. विदेशों में नि:शक्तों के लिए बीमा की व्यवस्था है, तािक कोई परेशानी न हो. वहीं भारत में तरस खाकर सरकारी नौकरियों में इनके िलए तीन प्रतिशत का आरक्षण का प्रावधान किया गया है. हालांिक इस प्रावधान का लाभ प्राय: सभी नि:शक्त नहीं उठा पाते हैं. देश के नि:शक्तों को सही मायने में तभी लाभ मिलेगा, जब उनके लिए शिक्षा, चिकित्सा ओर अन्य संसाधनों की व्यवस्था की जाये.
बात अगर नि:शक्तों को प्रतिमाह दी जानेवाली पेंशन की करें, तो इसमें भी राज्यवार भेदभाव नजर आता है. दिल्ली में यह राशि प्रतिमाह 1500 रुपये का है, तो झारखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में नि:शक्तों को महज 400 रुपये दिये जाते हैं. दुर्भाग्य तो यह है कि इस राशि की निकासी के लिए भी उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ती है.
हमारे देश में नि:शक्तों के उत्थान के प्रति सरकारी तंत्र में अजीब-सी शिथिलता नजर आती है. हालांकि, हर स्तर से नि:शक्तों के प्रति दयाभाव जरूर प्रकट किये जाते हैं, लेकिन इससे किसी नि:शक्त का पेट नहीं भरता है. आलम यह है कि आज नि:शक्तों को ताउम्र अपने परिवार पर आश्रित रहना पड़ता है.
इस कारण वह या तो परिवार के लिए बोझ बन जाते हैं या उनकी इच्छाएं दबी रह जाती हैं, िजसके वे हकदार हैं. यदि उन्हें शिक्षित कर सृजनात्मक कार्यों की ओर मोड़ा जाये, तो वे भी राष्ट्र के िवकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं. इस तरह वे जहां स्वावलंबी होंगे, वहीं वे अपने परिवार या आश्रितों पर बोझ नहीं बनेंगे. उम्मीद है सरकार और समाज इस िदशा में सार्थक पहल करेगी.
– सुधीर कुमार, गोड्डा

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें