और जानवरों के हिस्से का क्या!
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के महाकाव्य उर्वशी की पंक्तियां हैं- नहीं पुष्प ही अलम यहां फल भी जनना होता है, जो भी करती प्रेम उसे माता बनना होता है… मां की यह महिमा चिड़िया, जानवर, मछली सभी के लिए समान है. बहुत सी प्रजातियों में तो मां बच्चे के जन्म के […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के महाकाव्य उर्वशी की पंक्तियां हैं- नहीं पुष्प ही अलम यहां फल भी जनना होता है, जो भी करती प्रेम उसे माता बनना होता है… मां की यह महिमा चिड़िया, जानवर, मछली सभी के लिए समान है.
बहुत सी प्रजातियों में तो मां बच्चे के जन्म के बाद ही मर जाती है, फिर भी वह संतान को जन्म देती है. गांवों में आज भी मां बननेवाले किसी भी जानवर के लिए ममता का भाव देखने में आता है. मछलियों का जब अंडे देने का समय होता है, तब उन्हें नहीं पकड़ा जाता. गांवों में यदि कोई मादा जानवर पिल्लों को जन्म देती है, तो महिलाएं इस जच्चा के लिए पतला हलवा, जिसे लपसी कहते हैं, बनाती हैं. कहा जाता है कि पिल्लों के जन्म के बाद उनकी मां को यदि खाना न मिले, तो भूख के कारण वह पिल्लों को ही मार देती है.
तीन-चार दिन पहले की बात है. शाम का समय था. अपने पति के साथ पैदल ही लौट रही थी. दोनों तरफ से तेज गति से कारें आ रही थीं, तो हम थोड़ा रुक गये. तभी अचानक मेरे पति को लगा कि उनके पांव के पास कोई है. उन्होंने मुड़ कर देखा तो एक काली कुतिया नजर आयी.
उन्होंने कहा- अरे मैडम जाओ. क्या काटने का इरादा है. लेकिन वह तो अपना मुंह दूसरी तरफ बढ़ा रही थी. देखा तो पता चला कि जहां हम खड़े थे, वहां एक रोटी पड़ी थी, जिस तक वह पहुंचना चाहती थी. मन में दया उमड़ी. बेचारी, पता नहीं कब से कुछ नहीं खाया. हम एक तरफ खिसक गये. उसने लपक कर रोटी मुंह में दबायी और गोल चक्कर काटते हुए, पास में बने छोटे से पार्क में दौड़ गयी. मैंने कहा- लगता है, अपने बच्चों के लिए लेकर गयी है.
देखो तो, खुद चाहे चार दिन से कुछ न मिला हो, मगर पहले बच्चों की भूख की चिंता है, मेरे पति ने कहा. हम पीछे मुड़ कर देखने लगे. नजर तीन उसी जैसे काले पिल्लों पर पड़ी. वे पूंछ हिला रहे थे और रोटी को झपटना चाहते थे. उसने रोटी घास पर रख दी. पिल्ले रोटी को अपने नन्हे दांतों से तोड़ने की कोशिश करने लगे. वह दूर खड़ी अपने लाडलों की दावत को देखने लगी. हम वहां से चल दिये.
हम बातें करने लगे- इन बेचारों का कौन है. मनुष्य ने सारी धरती, पेड़, जंगल, जमीन, नदियां, दूध, पानी सब पर कब्जा कर लिया है. धरती पर मनुष्य सबसे ताकतवर है, इसलिए जो कुछ है, सो उसका है.
मनुष्यवादी राजनीति कहती है- आदमी भूखा मर रहा है और इन्हें जानवरों की चिंता पड़ी है. आदमी भूखा नहीं मर सकता, जानवर मर सकते हैं, ऐसा कहां लिखा है? यह नियम किसने बनाया? उनकी हर चीज को मनुष्य ने हड़प लिया और कहीं कोई आवाज नहीं उठी. उन्हें मार कर अपने भोजन, सुख-साधन, व्यापार, स्टेटस, स्टाइल स्टेटमेंट का प्रतीक बनाया और कहते हैं कि मनुष्य बड़ा न्यायप्रिय होता है.
बेचारे जानवर, अपनी पार्टी नहीं बना सकते, सरकारें नहीं चुन सकते, वोट नहीं दे सकते, चुनाव नहीं लड़ सकते. इसलिए वे चाहे किसी भी देश में हों, उस देश में भले लोकतंत्र हो, उन्हें तो मनुष्य की तानाशाही झेलनी ही पड़ती है. हमेशा ही उन्हें मनुष्यों के हाथों जिबह होना पड़ता है. मनुष्य ने जिस तरह से धरती से और अपने से इतर जो कुछ भी है, उसे बेदखल किया है, उसकी सजा उसे कैसे मिलेगी!