पेरिस में हुई सराहनीय पहल

पेरिस में जलवायु परिवर्तन रोकने के इरादे ने वैश्विक प्रतिबद्धता का रूप लिया. इस करार पर ईमानदारी से अमल हो, तो सदी के आखिर तक कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हम पा लेंगे. जलवायु वार्ता के इतिहास पर गौर करें, तो पता चलेगा कि 196 देशों में उभरी ताजा सहमति कितनी बड़ी उपलब्धि है. पेरिस सम्मेलन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2015 1:24 AM
पेरिस में जलवायु परिवर्तन रोकने के इरादे ने वैश्विक प्रतिबद्धता का रूप लिया. इस करार पर ईमानदारी से अमल हो, तो सदी के आखिर तक कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हम पा लेंगे. जलवायु वार्ता के इतिहास पर गौर करें, तो पता चलेगा कि 196 देशों में उभरी ताजा सहमति कितनी बड़ी उपलब्धि है.
पेरिस सम्मेलन की सबसे खास बात यही है कि दुनिया भर के देशों ने धरती को अत्यधिक गर्म होने से रोकने के उद्देश्य से खुद को संबद्ध किया. यह तकरार का मुद्दा नहीं बना कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए कौन जिम्मेदार है? चर्चाएं धरती का तापमान 2100 तक दो िडग्री से ज्यादा न बढ़ने देने के उपायों पर केंद्रित रहीं. सभी देशों ने वचन दिया कि वे ग्रीनहाउस गैसों में कटौती करेंगे.विकासशील देशों ने उदारता दिखायी, तो धनी देश भी कार्बन कटौती में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने पर सहमत हुए.
भारत की इसमें प्रमुख भूमिका तो रही ही, जलवायु न्याय के रूप में दुनिया को नयी धारणा भी दी. इस समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना सर्वथा उचित है कि पेरिस समझौते में न किसी की जीत हुई है, न किसी की हार. जब लक्ष्य वैश्विक हों, तो किसी देश की हार-जीत का प्रश्न नहीं रहता. पर्यावरण विशेषज्ञों का एक वर्ग इसे आदर्श समझौता नहीं मानता.
फिर भी कहना होगा कि शुरुआत सही दिशा में हुई है. कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए तय हुआ कि उतना ही कार्बन छोड़ेंगे, जितना धरती और समुद्र की हरियाली उन्हें सोख सके. कुल मिला कर कह सकते हैं कि पर्यावरणसम्मत विकास के विचार को अब दुनिया ने अपना लिया है. लेकिन, यह पूरे भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस विचार को साकार करने के लिए जिन उपायों पर सहमति बनी है, वे पर्याप्त हैं.
– अनिल सक्सेना, गया , बिहार

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