विकास के बाधक हैं नक्सली
नक्सलवाद या माओवाद को हमारे समाज का ही एक तबका संचालित कर रहा है, जो मुख्यधारा से अलग हो चुका है. जंगल और जमीन की लड़ाई छोड़ माओवादी आंदोलन मुख्य उद्देश्य से भटक चुका है. दरअसल, नक्सलवाद समाज की वह झूठी आवाज है, जो आम ग्रामीणों और आदिवासियों को अपने चंगुल में फंसाता है और […]
नक्सलवाद या माओवाद को हमारे समाज का ही एक तबका संचालित कर रहा है, जो मुख्यधारा से अलग हो चुका है. जंगल और जमीन की लड़ाई छोड़ माओवादी आंदोलन मुख्य उद्देश्य से भटक चुका है.
दरअसल, नक्सलवाद समाज की वह झूठी आवाज है, जो आम ग्रामीणों और आदिवासियों को अपने चंगुल में फंसाता है और उनका शोषण करता है. आम जनता भी इनकी नीयत से वाकिफ हो चुकी है. इन नक्सलियों ने लूट, चोरी, रंगदारी, खून-खराबा और सरकारी मशीनरी पर हमला करके देश के विकास को बाधित करने का कार्य किया है.
जहां देश की करोड़ों की आबादी बदहाली और भुखमरी में पिस रही हैं, वहां नक्सलियों की करतूतों से देश को प्रतिदिन अरबों रुपयों का नुकसान हो रहा है. कभी स्कूल, कभी रेलवे लाइन, तो कभी देश की सड़कों को ध्वस्त करके ये नक्सली देश की जीवन रेखा को मिटाने का कार्य करते हैं.
सरकारें बदलीं, लेकिन नक्सलवाद नाम का नासूर नहीं बदला. चाहे वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार हो, मनमोहन की सरकार या फिर अब की मोदी की सरकार, किसी ने नक्सलवाद के नासूर को उखाड़ फेखने की इच्छाशक्ति नहीं दिखायी. झारखंड, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में नक्सलियों का बड़ा नेटवर्क कार्य कर रहा हैं, लेकिन केंद्र व राज्य की सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं. विकास की योजनाएं नक्सलियों के हस्तक्षेप के कारण जमीन पर उतर नहीं पाती हैं.
नक्सलवाद या माओवाद का अंत तभी होगा, जब हमारे समाज से गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण, आर्थिक विषमता, सामाजिक भेदभाव, बाल मजदूरी, भ्रष्ट्राचार व भूमि का असमान वितरण जैसी समस्याएं दूर होंगी. सरकारों को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए.
-चंद्रशेखर कुमार, खलारी