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अधर में लटकी नियुक्ति प्रक्रिया

झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) अप्रैल माह में संपन्न हुई थी, परिणाम प्रकाशित हुए सात माह से अधिक का समय बीत चुका है. जोर-शोर से छात्रों के बीच प्रमाण-पत्र का वितरण किया गया था, तब यूं लगा कि नियुक्ति पत्र भी इसी रफ्तार से दिया जायेगा, लेकिन झारखंड में शिक्षक बनना उतना ही मुश्किल है, […]

झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) अप्रैल माह में संपन्न हुई थी, परिणाम प्रकाशित हुए सात माह से अधिक का समय बीत चुका है. जोर-शोर से छात्रों के बीच प्रमाण-पत्र का वितरण किया गया था, तब यूं लगा कि नियुक्ति पत्र भी इसी रफ्तार से दिया जायेगा, लेकिन झारखंड में शिक्षक बनना उतना ही मुश्किल है, जितना इस राज्य में स्थायी सरकार का बनना. झारखंड के निर्माण के समय से ही शिक्षकों की नियुक्ति तमाम राज्य सरकारों के लिए विवाद का विषय रही है. कभी भाषा के नाम पर, तो कभी स्थानीयता के नाम पर, तो कभी नियुक्ति प्रक्रि या के नाम पर. हर बार नियुक्तियां अधर में लटका दी जाती हैं.

बहुत कोशिशों के बाद सरकार ने गत 15 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस के मौके पर टेट का विज्ञापन जारी किया, पर यहां पर भी सरकार ने धोखा ही दिया है. सरकार ने सिर्फ एक से पांच वर्गवालों के लिए विज्ञापन जारी किया, वो भी बहुत सारे अनसुलझे प्रश्नों के साथ, जो नियुक्ति लटका सकते हैं. अगर इसे राजनीतिक घोषणा समझा जाये, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. छह से आठ वर्गवालों को बताया गया कि इसमें अभी बहुत सारी तकनीकी अड़चन है.

यह स्थिति निश्चित रूप से शर्मनाक है. अगर 2013 के अंत तक भी सरकार विज्ञापन जारी करने में नाकाम रही, तो इसके लिए झारखंड मानव संसाधन विकास विभाग जिम्मेदार होगा. जब तक झारखंड में रोजगार की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक यह राज्य विकास नहीं कर सकता. यदि हम शिक्षकों की नियुक्ति को ही मुद्दा बनायें, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड काफी पीछे छूट चुका है और इसकी जिम्मेदार यहां की भ्रष्ट राजनीति है.

आनंद कुमार साहू, कोलेबिरा

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