बांग्लादेश में जारी हिंसा के खतरे
चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक दलों का सड़कों पर शक्ति-प्रदर्शन दक्षिण एशियाई लोकतांत्रिक राजनीति की विशेषता रही है. कुछ लोग इसे लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण भी बताते हैं. लेकिन, फिलहाल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी जमायत-ए-इस्लामी के आह्वान पर बांग्लादेश के प्रमुख शहरों की सड़कों पर चल रहे शक्ति-प्रदर्शन के बारे में […]
चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक दलों का सड़कों पर शक्ति-प्रदर्शन दक्षिण एशियाई लोकतांत्रिक राजनीति की विशेषता रही है. कुछ लोग इसे लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण भी बताते हैं. लेकिन, फिलहाल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी जमायत-ए-इस्लामी के आह्वान पर बांग्लादेश के प्रमुख शहरों की सड़कों पर चल रहे शक्ति-प्रदर्शन के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.
एक तो यह शक्ति-प्रदर्शन हिंसक है, दूसरे बीएनपी अपने सहयोगी दलों के साथ एक ऐसी मांग पर अड़ी है, जिसे मानने का मतलब होगा बांग्लादेश में लोकतंत्र को कायम रखने के लिए जरूरी आम चुनावों की राह रोक देना. बीएनपी और उसके सहयोगी दल चाहते हैं कि अंतरिम सरकार को सत्ता सौंपे बगैर वहां चुनाव न हों, जबकि शेख हसीना की अगुवाई वाली गंठबंधन सरकार ने अगले साल जनवरी में चुनावों की घोषणा कर दी है.
फिलहाल विपक्षी दलों के समर्थकों के हिंसक प्रदर्शन के बीच बांग्लादेश में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और एकबारगी ऐसा लगने लगा है कि वहां पिछला घटनाक्रम खुद को दोहरा न दे. 2006 में खालिदा जिया के नेतृत्व में बनी बीएनपी की सरकार के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश की सड़कों पर ठीक ऐसा ही दृश्य दिखा था और वहां सेना को हस्तक्षेप करना पडा था. बांग्लादेश में लोकतंत्र का सफर डांवाडोल रहा है. वहां 1975 के बाद से 19 दफे सेना ने सत्ता में सीधे हस्तक्षेप किया है. दो प्रमुख नेताओं- शेख मुजीबुर्ररहमान और जनरल जियाउर्ररहमान की तख्तापलट की घटना में हत्या हो चुकी है.
विगत इतिहास को देखते हुए शेख हसीना की आशंका जायज लगती है कि अंतरिम सरकार की देखरेख में चुनाव कराने की बीएनपी की मांग दरअसल सेना को सत्ता पर काबिज करने की मांग है. भारत के लिए बांग्लादेश की स्थिति विशेष रुप से चिंताजनक है, क्योंकि बीएनपी और जमायत-ए-इस्लामी का आपसी सहयोग बरसों से बांग्लादेश को ‘राजनीतिक इसलाम’ के एक अग्रणी मोरचे में तब्दील करना चाहता है. शेख हसीना के सत्ता संभालने से पहले बांग्लादेश एशिया में आतंकवाद के नये हब के रूप में उभर रहा था. ऐसे में बांग्लादेश में शांतिपूर्वक अगली सरकार का गठन पूरे उप-महाद्वीप के लिए अहम है.