शहादत का अर्थ समझे केंद्र सरकार

करगिल युद्ध के हीरो कैप्टन सौरभ कालिया और उनके चार साथियों की शहादत की दास्तान भारतीय जनमानस के स्मृति-पटल पर ताजा है. भारत ने करगिल का युद्ध अगर जीता, तो कालिया जैसे जांबाजों की ही बदौलत. इस गौरवशाली प्रसंग का दुखांत पहलू यह रहा कि वे उन युद्धबंदियों में थे, जो पाकिस्तानी सेना द्वारा जिंदा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2013 3:46 AM

करगिल युद्ध के हीरो कैप्टन सौरभ कालिया और उनके चार साथियों की शहादत की दास्तान भारतीय जनमानस के स्मृति-पटल पर ताजा है. भारत ने करगिल का युद्ध अगर जीता, तो कालिया जैसे जांबाजों की ही बदौलत. इस गौरवशाली प्रसंग का दुखांत पहलू यह रहा कि वे उन युद्धबंदियों में थे, जो पाकिस्तानी सेना द्वारा जिंदा पकड़ लिये जाने के बाद कई दिनों तक मर्मातक यंत्रणा और फिर अंग-भंग के शिकार हुए. उनकी मौत की यह दास्तान पाक सेना के जिम्मेदार अधिकारी भी स्वीकारते हैं.

लज्जाजनक बात यह रही कि केंद्र की सरकारें शहीदों के मुद्दे ठंडे बस्ते में डालती गयीं. हाल में उनके परिवार ने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया है. काफी मशक्कत के बाद भी रक्षा मंत्रलय का रुख ठंडा रहा. अंत में केंद्रीय रक्षा मंत्री ने पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि शिमला समझौते के प्रावधानों के तहत मामले को अंतरराष्ट्रीय फोरम पर उठाया नहीं जा सकता. जाहिर है यह मुद्दा जन-संवेदना से भी जुड़ा है. सौरभ कालिया के साथ जो मृत्युपूर्व व्यवहार हुआ, वह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन था. भारत सरकार को इसके विरोध में पुरजोर आवाज उठानी चाहिए थी.

इस मामले को सिरे से खारिज करने के लिए शिमला समझौते की आड़ लेना एक अलोकप्रिय निर्णय है. जबकि शिमला समझौते में युद्धबंदियों से संबंधित वार्ता का स्पष्ट उल्लेख है. फिर भी रक्षा मंत्रालय को यदि लगा कि मौजूदा प्रावधान पर्याप्त नहीं हैं, तो फिर नये प्रावधान बनाने की दिशा में कदम क्यों नहीं उठाये गये? मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ले जाया जा सकता था. लेकिन सरकारी लापरवाही से हमारी सेना के बहादुर जवानों का मनोबल गिरता है.

हेम श्रीवास्तव, बरियातू, रांची

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