जुर्म जीत गया !
‘‘जुर्म जीत गया!’’ यह आह से उपजी एक मां की चीख है. सच तो यह है कि सिर्फ इंसानियत हारी, बाकी सब जीत गये. हम ‘निर्भया’ के लिए इंसाफ मांगते रहे. जब तक ‘जुवेनाइल’ की खाल ओढ़े आरोपित घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे, क्या किसी पीड़ित या पीड़िता को इंसाफ मिल पायेगा. एक मां ने […]
‘‘जुर्म जीत गया!’’ यह आह से उपजी एक मां की चीख है. सच तो यह है कि सिर्फ इंसानियत हारी, बाकी सब जीत गये. हम ‘निर्भया’ के लिए इंसाफ मांगते रहे. जब तक ‘जुवेनाइल’ की खाल ओढ़े आरोपित घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे, क्या किसी पीड़ित या पीड़िता को इंसाफ मिल पायेगा.
एक मां ने अपनी बेटी को खो दिया, हम तख्तियां लिये खड़े रहे. कैंडिल लेकर प्रदर्शन करते रहे. तीन साल पहले जब कातिलों को सजा सुनायी गयी, तो सब ने अपनी-अपनी जीत मान ली. गुनाहगार की उम्र कठोर सजा के लायक नहीं थी.
हम यह भी जानते थे कि इंसाफ कानून की हद को पार नहीं कर पायेगा, फिर भी हम खामोश थे. सच तो यह है कि हम बिलखती मां की आंसुओं को ही छलते रहे हैं. कातिल जब तक ‘जुवेनाइल’ की खाल में दुबका रहेगा, जीत जुर्म की ही होती रहेगी.
– एमके मिश्र, रांची