किसानों की उपेक्षा से बाधित होगा विकास
कृषि भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 16 फीसदी योगदान देने के साथ ही यह करीब 50 फीसदी लोगों को कृषि क्षेत्र में रोजगार भी उपलब्ध कराता है. देश का हर व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि से संबंध रखता है. भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद यहां […]
कृषि भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 16 फीसदी योगदान देने के साथ ही यह करीब 50 फीसदी लोगों को कृषि क्षेत्र में रोजगार भी उपलब्ध कराता है.
देश का हर व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि से संबंध रखता है. भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद यहां के किसान विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं. एकतरफ पर्यावरण और जैव-विविधता को सहेजने की चुनौती है, तो दूसरी ओर किसानों की अपनी समस्याएं हैं. वर्षा पर निर्भर किसान माॅनसून की अनियमितता से छले जाते हैं.
इस वर्ष देश के 640 जिलों में से 302 जिलों में औसतन 20 फीसदी से कम बारिश हुई है, जबकि करीबन 50 फीसदी हिस्से सूखे की चपेट में हैं. कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने संसद के वर्तमान सत्र (लोकसभा) में प्रश्नोत्तर के दौरान यह स्वीकार भी किया कि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना समेत देश के नौ राज्यों के करीब 207 जिले सूखे से घोर प्रभावित हैं. बदलते समय के साथ किसानों के समक्ष चुनौतियां भी बढ़ी हैं. भारतीय कृषि का स्वर्णिम दौर समाप्ति के कगार पर है. मृदा की घटती उर्वरता, घटता भू-जल स्तर और महंगे होते कृषि-उत्पादों ने किसानों के समक्ष एक नयी समस्या पैदा की है.
इस तरह कृषि क्षेत्र में लागत व मुनाफे के बढ़ते अंतर ने किसानों को सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है. मौसम की मार और ऊपर से सरकारी उपेक्षा ने किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया है.
कृषि प्रधान देश के लिए यह राष्ट्रीय शर्म की बात है कि यहां महाराष्ट्र, छतीसगढ़ व मध्यप्रदेश जैसे राज्य किसानों की आत्महत्या के मामले में पर्याय बन कर उभरे हैं. आशा है, आज ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ पर हमारे नेता व अधिकारीगण इस ओर ध्यान देंगे. कृषि और कृषक की उपेक्षा से देश का विकास संभव नहीं है.
– सुधीर कुमार, गोड्डा