प्रशासन का खौफ नहीं रह गया क्या?
रविवार, एक दिसंबर को आपके अखबार में झारखंड बंद से जुड़ी जो तसवीरें देखीं, उससे यही एहसास होता है कि शनिवार, 30 नवंबर को जो बंद का आह्वान किया गया था, वह सिर्फ उत्पात मचाने के लिए था. तसवीरों से जाहिर होता है कि करमटोली चौक पर सिर्फ एक व्यक्ति ने दर्जनों गाड़ियों को क्षतिग्रस्त […]
रविवार, एक दिसंबर को आपके अखबार में झारखंड बंद से जुड़ी जो तसवीरें देखीं, उससे यही एहसास होता है कि शनिवार, 30 नवंबर को जो बंद का आह्वान किया गया था, वह सिर्फ उत्पात मचाने के लिए था. तसवीरों से जाहिर होता है कि करमटोली चौक पर सिर्फ एक व्यक्ति ने दर्जनों गाड़ियों को क्षतिग्रस्त किया और राहगीरों से बदतमीजी की.
बंद शांतिपूर्ण होना चाहिए था, हिंसक और रोषपूर्ण नहीं. ऐसे उपद्रव से बंद समर्थक क्या साबित करना चाहते हैं? सबसे बड़ी गलती तो प्रशासन की है, जिसके अफसर बंद से एक दिन पूर्व कहते हैं कि किसी को कानून हाथ में लेने नहीं दिया जायेगा, जबकि अगले दिन सरेआम गाड़ियों की तोड़फोड़ की जा रही थी और पुलिस मूकदर्शक बनी देख रही थी. अखबार में छपी तसवीर के आधार पर प्रशासन उपद्रवियों को कड़ी सजा देकर सबक सिखाये.
नरेंद्र कुमार, मोरहाबादी, रांची