बदली जायें हानिकारक नीतियां
सृष्टि और विनाश, जन्म-मरण व प्राकृतिक परिवर्त्तन अटल है. इसे कोई भी व्यक्ति नकार नहीं सकता, लेकिन हम लोग प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर समय से पहले ही देश-दुनिया को नष्ट करने पर तुले हैं. यह कहा जा सकता है कि हम अपना गला खुद ही घोंट रहे हैं. इन दिनों इस परिस्थिति को […]
सृष्टि और विनाश, जन्म-मरण व प्राकृतिक परिवर्त्तन अटल है. इसे कोई भी व्यक्ति नकार नहीं सकता, लेकिन हम लोग प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर समय से पहले ही देश-दुनिया को नष्ट करने पर तुले हैं. यह कहा जा सकता है कि हम अपना गला खुद ही घोंट रहे हैं. इन दिनों इस परिस्थिति को भांपते हुए दुनिया के हर लोगों के जेहन में एक प्रश्न उभर रहा है कि प्रकृति को कैसे बचाया जाये? सृष्टि बचेगी या विनाश होगा. इस पर हमारी कोई पकड़ नहीं है.
हम प्रकृति के नियमों को बदल नहीं सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने क्रिया-कलापों में सुधार नहीं कर सकते. हम चकाचौंध करनेवाले विकास में खोते जा रहे हैं. हम जिस तेज गति से विकास की ओर बढ़ रहे हैं. कल-कारखानों के निर्माण एवं पेड़-पौधों के काटने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है. अत: अब देश दुनिया में विनाश को बढ़ावा देनेवाली योजनाओं एवं नीतियों में परिवर्त्तन करने की आवश्यकता है.
-वशिष्ठ कुमार हेंब्रम, प सिंहभूम