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खोखली राजनीति!
दिल्ली में वायु प्रदूषण के गंभीर होते संकट को लेकर बीते कुछ समय से जितनी चिंता जतायी गयी है, राजनीतिक फिजां में अशोभनीय शब्दों के प्रयोग और आरोप-प्रत्यारोपों से बढ़ता ‘प्रदूषण’ उससे कम चिंताजनक नहीं है. साल 2015 के शुरुआती महीनों में राजनीतिक क्षितिज पर दोबारा चमके आम आदमी पार्टी (आप) नेता अरविंद केजरीवाल पर […]
दिल्ली में वायु प्रदूषण के गंभीर होते संकट को लेकर बीते कुछ समय से जितनी चिंता जतायी गयी है, राजनीतिक फिजां में अशोभनीय शब्दों के प्रयोग और आरोप-प्रत्यारोपों से बढ़ता ‘प्रदूषण’ उससे कम चिंताजनक नहीं है. साल 2015 के शुरुआती महीनों में राजनीतिक क्षितिज पर दोबारा चमके आम आदमी पार्टी (आप) नेता अरविंद केजरीवाल पर साल की विदाई वेला में यदि चौतरफा हमले हो हैं, तो इसका कारण खुद केजरीवाल ही है.
बीत रहा साल दिल्ली में आप के कई विधायकों-मंत्रियों की काली कमाई और गैरकानूनी हरकतों की पोल खुलने का भी गवाह बना. बावजूद इसके, पिछले दिनों भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक अधिकारी के बचाव में ढाल बन कर खड़े होने, सीबीआइ जैसी संस्था के कामकाज पर सवाल उठाने, प्रधानमंत्री तक के लिए अवांछित एवं अशोभनीय शब्दों का खुलेआम प्रयोग करने के बाद अब दिल्ली के उपराज्यपाल को भी भ्रष्ट बता कर केजरीवाल ने जता दिया है कि उनके मन में किसी भी संवैधानिक पद या उस पर आसीन व्यक्ति के लिए कोई आदर नहीं रह गया है!
जनहित की राजनीति के लिए जिस सादगी, शुचिता और पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है, केजरीवाल उस पर लगातार पानी फेरते दिख रहे हैं.
विरोधी को मनमाने तरीके से दोषी ठहराने में न तो उन्हें तय प्रक्रियाओं की चिंता है, न ही शब्दों के चयन की. खबर है कि दिल्ली क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में भ्रष्टाचार की जांच के लिए उनकी सरकार द्वारा गठित आयोग को उपराज्यपाल ने यह कह कर मंजूरी नहीं दी कि दिल्ली सरकार को आयोग गठित करने का अधिकार नहीं है, तो बौखलाये केजरीवाल ने कह दिया, ‘उपराज्यपाल खुद ट्रांसपोर्ट स्कैम में फंसे हैं’ और ‘यहां तो पूरी दाल ही काली है’.
इससे पहले डीडीसीए भ्रष्टाचार मामले में केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली पर लगाये उनके आरोपों में कितना दम है, यह तो जांच या अदालत की सुनवाई से तय होगा, पर जेटली द्वारा व्यक्त इस विचार से असहमत होने का कोई कारण नहीं है कि ‘सम्मानजनक पदों पर रहनेवालों के लिए अभद्र भाषा शोभा नहीं देती और अगर केंद्र सरकार से जुड़ा कोई व्यक्ति ऐसी भाषा का इस्तेमाल करता तो देश में हंगामा खड़ा हो जाता.’ उधर, शिवसेना ने भी कहा है कि ‘केजरीवाल किसी पर भी आरोप या कीचड़ उछाल देते हैं और सामनेवाले को पक्ष रखने भी नहीं देते, लेकिन उनकी राजनीति पानी का बुलबुला है, जिसे फूटने में समय नहीं लगेगा.’
गौरतलब है कि अन्ना आंदोलन से अलग होकर केजरीवाल ने 26 नवंबर, 2012 को आम आदमी पार्टी के गठन की घोषणा की थी, तो देश ने उनसे राजनीति में नया विकल्प देने की उम्मीदें बांध ली थी.
दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हरा कर उन्होंने बदलाव की उम्मीदों को परवान चढ़ा दिया था. 2014 के आम चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीदवारों के जमानत जब्त होने का रिकाॅर्ड अपनी पार्टी के नाम दर्ज कराने के बावजूद केजरीवाल से दिल्ली में बदलाव की उम्मीदें खत्म नहीं हुई थीं. और इस साल फरवरी में केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीत कर कामयाबी के एक नये शिखर को छू लिया. लेकिन, कहना गलत नहीं होगा कि देश को राजनीतिक विकल्प देने की आप से बंधी उम्मीदों पर पानी फिरने की एक नयी शुरुआत भी यहां से हो गयी.
ऐतिहासिक बहुमत से उपजे दंभ में केजरीवाल ने पार्टी के कई संस्थापक एवं वरिष्ठ सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. मई, 2015 में आप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विरोधियों के खिलाफ जिस तरह से बाउंसर्स का प्रयोग किया गया, उसने ‘वैकल्पिक राजनीति’ की उम्मीदों को ‘लंपट राजनीति’ के गड्ढे में धकेल दिया. इतना ही नहीं, सत्ता की जिस राजशाही शैली के खिलाफ केजरीवाल ने कभी बिगुल फूंका था, सत्ता मिलने पर खुद भी उसी शैली का दामन थाम लिया.
विधायकों के वेतन-भत्ते चार गुना तक बढ़ाने के साथ-साथ उच्च पदों पर मनमाने तरीके से अपने परिचितों की नियुक्ति कर उन्होंने शूचिता और पारदर्शिता को पूरी तरह तिलांजलि दे दी.
अब साल 2015 विदा ले रहा है, लेकिन केजरीवाल का दंभ बढ़ता ही दिख रहा है. अपने हालिया बयानों और हंगामों के जरिये केजरीवाल ने साबित कर दिया है कि वे उन राजनेताओं में शामिल हो गये हैं, जिनकी राजनीति जनता और जनहित से जुड़ कर कम, आरोप-प्रत्यारोपों के जरिये सुर्खियां बटोरने से ज्यादा चमकती है.
केजरीवाल को समझना चाहिए कि सबको बेईमान-चोर कहने भर से राजनीति परवान नहीं चलती, इसके लिए खुद को सबसे अलग दिखाना भी जरूरी होता है. अच्छा होता यदि वे इस तरह की खोखली और तमाशाई राजनीति से दूर रह कर दिल्ली को एक बेहतरीन शासन देने पर अपना ध्यान केंद्रित करते.
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