‘प्रभात खबर’ के 28 नवंबर के अंक में छपा लेख ‘महानता को नहीं, बाजार को भारत रत्न’ (डॉ खगेंद्र ठाकुर) विगत कई दिनों से भारत रत्न पर हो रही चर्चाओं पर सबसे ज्यादा प्रभावशाली इसलिए लगा क्योंकि इसमें असल भारत की बात है.
उस भारत की नहीं, जिसकी सुन कर गृहमंत्री ने यह सम्मान दिये जाने का औचित्य बताया था. कितनी आसानी से सरकार ने गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि मुद्दों को हास्यास्पद बना दिया.
यह सम्मान देने के लिए कई संशोधन किये गये हैं, तो एक यह भी कर दिया जाना चाहिए कि हर भारत रत्न चुना गया शख्स अपने अब तक के अर्जित धन का आधा हिस्सा भारत को देगा. देख लीजिएगा इसके बाद क्या होता है? वैसे यह लेख आपके कुछ संपादकों को जरूर पढ़ना चाहिए, जिन्होंने इस अखबार में क्रि केट की अति कर रखी है.
कमल सिंह, जमशेदपुर