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नादान दिल नहीं, शायर साहब हैं!

।। अखिलेश्वर पांडेय ।। प्रभात खबर, जमशेदपुर दिल और दिमाग के बीच जंग चलती ही रहती है. दिल भिखारी को देख कर पिघल जाता है, लेकिन दिमाग जेब की ओर बढ़ते हाथ को यह कह कर रोक देता है कि इससे कामचोरी को बढ़ावा मिलता है. दिल मचलना चाहता है, पर दिमाग कानून की दफाएं […]

।। अखिलेश्वर पांडेय ।।

प्रभात खबर, जमशेदपुर

दिल और दिमाग के बीच जंग चलती ही रहती है. दिल भिखारी को देख कर पिघल जाता है, लेकिन दिमाग जेब की ओर बढ़ते हाथ को यह कह कर रोक देता है कि इससे कामचोरी को बढ़ावा मिलता है. दिल मचलना चाहता है, पर दिमाग कानून की दफाएं याद दिलाने लगता है.

शायद यही वजह है कि शायरों, गीतकारों, कवियों को दिमाग काबिले गौर चीज नहीं लगता. उनकी रचनाओं में तो बस दिल, जिगर, नैनों का बोलबाला होता है. दिमाग से दूरी बनाने के चक्कर में वे ऊल-जुलूल गीत बनाते रहते हैं. जब दिल ही टूट गया, हम जी कर क्या करेंगे. पुराना गाना है, पर शायद सबने सुना हो.

दिल टूटने के बाद जी ही नहीं सकते. जब आपके पास ऐसा कोई विकल्प ही नहीं, तो ये क्या कहना कि जी कर क्या करेंगे! शायरों को थोड़ा सा जीव-विज्ञान का ज्ञान होता तो बहुत से बेतुके गीत न बनते जैसे दिल के टुकड़े हजार हुए.., दिल न हुआ कांच का गिलास हो गया.

दिल में तो एक मामूली सा छेद हो जाए तो बड़ा सा आपरेशन करवाना पड़ता है. शायर और कवि तो दिल से ऐसे खेलते हैं, मानो दिल न हो कोई खिलौना हो, खिलौना जान कर तुम दिल ये मेरा तोड़ जाते हो.. जैसा गीत लिख डालते हैं.

गीत हो या संवाद, फिल्म हो या टीवी धारावाहिक, उपन्यास हो या कहानी, नया हो या पुराना, दिल से ऐसे-ऐसे काम करवाये जाते हैं जो हो ही नहीं सकते. गुर्दे की चोरी हो भी सकती है, क्योंकि वो दो होते हैं, एक चोरी हो जाए तो दूसरा पूरा काम संभाल लेता है, पर दिल निकालने से तो आदमी तुरंत मर जायेगा.

फिर भी हमारे ‘बुद्धिजीवी’ कवि प्यार में दिल चुराने की बात करते थकते नहीं, चुरा लिया है तुमने जो दिल को नजर नहीं चुराना सनम. दिल चोरी होने के बाद नजर यानी आंख चुराने के लिये कोई जिंदा बचेगा क्या? ये तो सीधे-सीधे कत्ल का मामला हो जायेगा.

एक और गाना याद आया, दिल-विल प्यार-व्यार मैं क्या जानू रे, सही कहा दिल के बारे में कवि महोदय ने, दिल तो सिर्फख़ून को पूरे शरीर में पम्प करके भेजता है. प्यार-व्यार जैसे काम तो दिमाग कुछ हारमोन्स के साथ मिल कर करता है, और कवि ठीकरा उस बेचारे मुट्ठी भर नाप के दिल के सर फोड़ते हैं.

ऐ मेरे दिले नादान तू गम से न घबराना.. अजी साहब! नादान दिल नहीं, शायर है. दिल को तो घबराना आता ही नहीं, ये काम तो दिमाग का है. घबराने के लिए दिमाग को कुछ ज्यादा ही खून चाहिए होता है, इसलिए दिल को तेजी से धड़क कर उसे सप्लाई करना पड़ता है. और, कवि समझने लगते हैं कि दिल ही घबरा रहा है.

दरअसल, हमारे भीतर प्रेम की भावना मुख्य रूप से एक केमिकल के कारण पैदा होती है. यानी, लवेरिया केमिकल्स व हार्मोस के संयोजन का नतीजा है. तो मेरे शायर, कवि और गीतकार भाइयो, थोड़ा शरीर विज्ञान का ज्ञान बढ़ाओ और ऊल-जुलूल गीतों से लोगों को मत सताओ!

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