एक जमाने में उनकी तूती बोलती थी

।। चंचल ।। (सामाजिक कार्यकर्ता) पहले उनकी कहानी सुनिए, जो लंबे अरसे से कहानी बेच कर जिंदगी काट रहे हैं. इनका नाम है रसूल धुनिया वल्द हसन धुनिया सरूप पुर वाले. एक जमाने तक इनकी तूती बोलती थी, दूर-दूर के लोग इनके पास आते थे और अदब के साथ इनको अपने घर ले जाते थे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 4, 2013 3:48 AM

।। चंचल ।।

(सामाजिक कार्यकर्ता)

पहले उनकी कहानी सुनिए, जो लंबे अरसे से कहानी बेच कर जिंदगी काट रहे हैं. इनका नाम है रसूल धुनिया वल्द हसन धुनिया सरूप पुर वाले. एक जमाने तक इनकी तूती बोलती थी, दूर-दूर के लोग इनके पास आते थे और अदब के साथ इनको अपने घर ले जाते थे. इज्जत के साथ इनकी आवभगत होती रही, खाना-पीना औकात के मुताबिक होता. रसूल मियां इलाके की नाक थे. काम केवल इतना था कि रूई धुनते थे. उसे कपड़े की खोल में डालते थे. रूई सम करते, टांकते थे. एवज में नकद तो लेते ही, साथ में पिसान, दाल-चाउर, गुर, अचार, खटाई से लेकर नमक तक उस चादर में भर लाते थे, जिसके चारों कोनों को गठिया कर बाकायदा झोला बना दिया है. कुल दो महीने की धुनाई सालभर का खर्च दे जाती थी.. लेकिन एक दिन रसूल की धुनकी खूंटी पर लटक गयी, क्योंकि बाजार में रूई धुनने की मशीन लग गयी.

रसूल की जिंदगी का हाल यह था कि उनकी जमींदारी बस उनके खानदानी बखरी तक महदूद रही और दरवाजे के सामने बीस हाथ का दुआर और उस जमीन पर एक पेड़ जामुन और एक पेड़ नीम के मालिक रसूल मियां रहे. वही रसूल आज चिखुरी के दिमाग में घूम रहे हैं. शायद इस ठंड के मौसम ने रसूल की याद दिला दी हो. चिखुरी उठे और सीधे चौराहे न रुक कर उमर दरजी के घर जा पहुंचे और खटिया खींच कर बैठ गये. कंधे पर रखी बंडी निकाल उमर के सामने फैला दिया. इस तरह की बंडी बन सकता है का? उमर ने बगैर कुछ सोचे-समङो टका सा जवाब दिया-कत्तई नहीं, वो जमाना गया. न रसूल धुनिया रहे, न इसलाम दरजी. पता नहीं आप कैसे बचे रह गये हैं, वरना इसे अब पहनता कौन है! दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, फिर चुप हो गये. चिखुरी ने कहा- एक काम करो, अपनी बीवी को बुलाओ. उमर ने चौंकने का नाटक किया- बीवी को बुलाऊं? वो क्या करेगी? पहले बुलाओ तो सही. वह आपके सामने नहीं आयेगी. चिखुरी उखड़ गये- निहायत नामाकूल इनसान हो भाई, वह मेरी बहू है, बहू और बेटी में क्या फर्क. उसे बुलाओ. बुलाना क्या था, वह तो वहीं आंगन में थी. उमर ने बताया, आ गयी है बताइये. चिखुरी ने कहा, देख बेटा यह बंडी तुम्हारे ससुर की सिली हुई है. बहुत दिन चल चुकी है, कहीं-कहीं उधड़ गयी है. बस इसमें चकती लगा दो. और सुनो, तुम्हारे लिए इसके खीसे में पांच का सिक्का है. कुछ खरीद लेना. चिखुरी उठने ही वाले थे कि उमर की बीवी स्टील की गिलास में चाय लेकर आयी और अपनी बेटी से चिखुरी के पास भेज दी. उमर को अपने लिए चाय मांगनी पड़ी. चिखुरी ठहरे ‘बाभन’, पर यह सब उनके लिए मायने नहीं रखता. सुराज की लड़ाई में चिखुरी नैनी जेल में रहे, सब अपनी आंखन देखी जानते हैं. आचार्य जी (नरेंद्रदेव), पंडित जी, मौलाना साहेब सबको देख चुके हैं, न जात न पांत. चिखुरी ने गांव में वही किया. देखते-देखते सब चिखुरी की डगर पर आ गये. चिखुरी दुबे खुल्लम-खुल्ला उमर के घर चाय पी रहे हैं- यह खबर चौराहे तक चली गयी. लिहाजा एक-एक कर लोग उमर के दरवाजे पर जमा हो गये.

कयूम ने एक बुनियादी सवाल उठाया- रसूल धुनिया थे, लेकिन यह धुनिया होता क्या है? और रसूल के बाद यह जाति खत्म क्यों हो गयी? किसी के पास इसका इल्म नहीं है कि धुनिया कहां से चले और कब खत्म हो गये? कयूम ने रसूल के आखिरी दिन का किस्सा उठा दिया. ‘मशीन खतरनाक है’ यह अब समझ में आने लगा है. गांव में जब मशीनें आयीं, जांत चकरी गायब, तेली की घानी बंद हो गयी और रसूल की धुनियागीरी चली गयी. रसूल मियां जिंदगी के आखिरी दिन बच्चों को कहानियां सुनाने में गुजारते थे. अल सुबह बच्चे घेर कर बैठ जाते. घर से कोई-न-कोई खाने का सामान लेकर आते. कुछ घर की जानकारी में, कई चोरी-छिपे जो भी मिला उठा लाये. एक दिन जुम्मन ने आरोप लगाया कि रसूल बच्चों को बिगाड़ रहा है, चोरी करना सिखा रहा है. नतीजा हुआ कि हर घर की औरत और मर्द को हिदायत दी गयी कि बच्चों को रसूल से दूर रखें. दो-एक दिन तो यह चला भी, पर बच्चों को कौन रोकता..

एक दिन पता चला कि जुम्मन मियां ने शादी के लिए जो मारकीन का सुथना सिलवाया था, गायब हो गया है. कहनेवाले तो यहां तक कहते हैं कि जिस दिन जुम्मन की बारात निकलनेवाली थी, उसी दिन रसूल ने इस बदमिजाज दुनिया को अलविदा कह दिया. कहनेवाले तो यह भी कहते हैं कि जब लड़कीवालों को पता चला कि रसूल मियां जुम्मन की वजह से मरे, तो उन्होंने शादी से इनकार कर दिया. चिखुरी ने टोका- असल में कभी रसूल मियां ने लड़कीवालों की बड़ी मदद की थी. दो गद्दा, रजाई, तकिया मुफ्त में बनाया था. छोड़ो, पर एक बात याद रखना, जब भी कोई जाति अपने पेशे से हटती है तो केवल जाति या पेशा ही गायब नहीं होता, हमारी तमीज व तहजीब गायब होती है, भाषा दरिद्र होती है. लालसाहेब से नहीं रहा गया- लेकिन वो जुम्मन का सुथना? मिला पर देर से..

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