उच्च शिक्षा का यह हाल डराता है

।। दीपक कुमार मिश्र ।।(प्रभात खबर, भागलपुर) हाल के दो दृष्टांत बताता हूं. पिछले दिनों देश के एक मूर्धन्य पत्रकार व संपादक के सारगर्भित विचारों को सुनने का अवसर एक सेमिनार में मिला. सेमिनार उच्च शिक्षा की स्थिति पर था. उन्होंने उच्च शिक्षा की स्थिति के प्रति अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 4, 2013 3:53 AM

।। दीपक कुमार मिश्र ।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)

हाल के दो दृष्टांत बताता हूं. पिछले दिनों देश के एक मूर्धन्य पत्रकार व संपादक के सारगर्भित विचारों को सुनने का अवसर एक सेमिनार में मिला. सेमिनार उच्च शिक्षा की स्थिति पर था. उन्होंने उच्च शिक्षा की स्थिति के प्रति अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कई बार पीएचडी डिग्रीधारी नौकरी के लिए आते हैं, तो उनमें से कई सही-सही आवेदन भी लिख नहीं पाते. इस सेमिनार के कुछ दिन बाद तहसीलदारों की नियुक्ति के लिए हो रहा एक साक्षात्कार देखने का मौका मिला. मेरे सामने 15-20 लोगों का साक्षात्कार लिया गया. सभी ऊंची डिग्रियों से लैस थे. सच मानिए अगर मुङो नंबर देना होता, तो किसी को पांच नंबर भी नहीं देता. बहुत मामूली प्रश्नों का सही उत्तर भी उनके पास नहीं था. जैसे 1008 में अगर 9 घटा देंगे, तो कितना होगा. अगर एक लाख वसूलने पर चार प्रतिशत कमीशन मिलता है, तो डेढ़ लाख रुपये की वसूली पर कितना कमीशन होगा. किसी ने इसका जबाव 600 दिया, तो किसी ने 1600. इसी तरह के साधारण से प्रश्न किये गये लेकिन उत्तर नहीं मिल पाया. जबकि ऐसे प्रश्नों का उत्तर गांव के अनपढ़ केवाली (वजन करनेवालों को मेरे यहां केवाल कहा जाता है) करने वाले बता देंगे.

इन दो दृष्टांतों को देख मन में एक सवाल तो जरूर उठता है कि कहां और किस ओर जा रहे हैं हम. हाल ही में सरकार ने अनपढ़ महिलाओं को टेबलेट देने की घोषणा की है. यह क्या दर्शाता है? जिसको स्लेट पर ‘क’ लिखना नहीं आता, उसे हम टेबलेट थमा रहे हैं. हमारी शिक्षा व्यवस्था का वही हाल है, जो हम जैसे हजारों क्रिकेट समीक्षकों का है. ठीक से बल्ला पकड़ने भले ही न आता हो, लेकिन टीवी पर मैच देखते हुए क्रिकेट की समीक्षा भी करते रहते हैं. अगर गेंद को ऐसे खेलते तो धौनी का चौका होता और ऐसा नहीं करते तो सचिन आउट नहीं होता. मैच में हार के बाद तो किक्रेट समीक्षा का पूरा ज्ञान बखान कर देते हैं. पिच पर किन और किस-किस परिस्थितियों का सामना खिलाड़ी करता है, उसका तो भान है नहीं, लेकिन अपने विचारों का ज्ञान अवश्य बघार देते हैं. कुछ यही हाल अपने यहां शिक्षा व्यवस्था का है.

आजादी के बाद, पिछले 60 सालों से ज्यादा समय से शिक्षा पर प्रयोग हो रहा है. अभी तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये हैं कि हमारी शिक्षा पद्धति कैसी हो. असल में हमारे योजनाकारों को यथार्थ से मतलब ही नहीं होता. सभी लोग एक दूसरे की मीन- मेख निकालने में लगे रहते हैं. हम बड़े कि तुम बड़े, इसे फेर में रहते हैं. जब तक कोई भी निर्णय व्यक्तिगत सोच के तहत होगा, उसका फलक विराट नहीं हो सकता. अब भी समय है, हम चेतें. क्योंकि ज्ञान के रास्ते चल कर ही तरक्की का नया पथ बनता है.

Next Article

Exit mobile version