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नाम में क्या रखा है? जिसे गुलाब कहते हैं, उसे किसी और नाम से पुकारो तो भी वह महकेगा तो वैसा ही. शेक्सपीयर ने जूलिएट के मुंह से रोमियो के लिए यह कहलवाया. लेकिन जूलिएट से बेहतर कौन जानता था कि कुल-गोत्र का पता देनेवाला नाम ही तो है, जो रोमियो को जूलिएट का बैरी […]

नाम में क्या रखा है? जिसे गुलाब कहते हैं, उसे किसी और नाम से पुकारो तो भी वह महकेगा तो वैसा ही. शेक्सपीयर ने जूलिएट के मुंह से रोमियो के लिए यह कहलवाया. लेकिन जूलिएट से बेहतर कौन जानता था कि कुल-गोत्र का पता देनेवाला नाम ही तो है, जो रोमियो को जूलिएट का बैरी बनाता है.

जूलिएट ने कहा भी है, ‘टिस बट दाइ नेम दैट इज माय एनमी!’ प्रेम में पड़े इनसान के रूप में ही नहीं, रोजमर्रा की जिंदगी जीते आदमी के रूप में भी जूलिएट ने जिस समस्या का जिक्र किया है, वह चिरंतन है! किसी चीज को नाम देते ही वह चीज अपने इतिहास का पता देने लगती है. यह इतिहास अनुकूल हुआ, तो आप उस चीज से राग का रिश्ता बांध लेते हैं, और विपरीत हुआ, तो औकात के हिसाब से या तो कन्नी काट लेते हैं या नष्ट करने में लग जाते हैं. लेकिन, राग और द्वेष से उबरना नहीं हो पाता. रोमियो शत्रु खानदान मॉन्टाग्यू से था, जूलिएट ने ठीक कहा कि तेरा नाम ही मेरा शत्रु है, तू अपना नाम छोड़ दे, ‘डॉफ दाइ नेम’!

जूलिएट जिस मुश्किल से दरपेश थी, वही मुश्किल आज आन खड़ी है. आज के दिन को क्या नाम दें? नाम तो देना पड़ेगा. आज के दिन को बीते हुए और आनेवाले बेशुमार दिनों से अलग करने के लिए एक नाम चाहिए ही. मगर नाम दें, तो संकट आन खड़ा होता है. 31 दिसंबर कहते ही किसी के मन में गूंजेगा : ओह! साल का आखिरी दिन और वह बीते 364 दिनों का बही-खाता खोल लेगा. उसके मन-मिजाज और हित के हिसाब से खाते में उपलब्धियां ज्यादा हुईं, तो बीते हुए साल को अपनी यादों में संजो लेगा. तुलना के लिए उसके पास एक प्रतिमान हो जायेगा.

गति करते पैरों के आगे एक रेखा खिंच जायेगी. यह आदमी चाहेगा- काश! उपलब्धियों के ये दिन यूं ही ठहरे रहते! और अगर साल के बही-खाते में उपलब्धियां कम हुईं, विफलताएं ज्यादा, तो कठिनाइयों से उबरने के जतन में लगा आदमी सोचेगा : भला हुआ, जो यह साल अपने आखिरी मुकाम पर आया! यह आदमी चाहेगा कि उसके आनेवाले बेशुमार दिनों पर बीते हुए साल की कोई छाया ना पड़े. यह आदमी अपनी बीती सुबहों को आनेवाले सवेरों से कुछ इस तरह काटना चाहेगा, मानो दोनों के बीच एक रात का भी रिश्ता ना हो.

आज के दिन को 31 दिसंबर कहते ही कोई इसे गुजरे साल की उपलब्धियों का साक्ष्य मान कर ठहरा लेना चाहता है, कोई विफलताओं की कहानी मान कर भूल जाना चाहता है, नयी शुरुआत करना चाहता है! एक के पास अतीत ही अतीत है, दूसरे के पास भविष्य ही भविष्य, लेकिन दोनों के पास ‘आज’ नहीं है.

यह समस्या इसलिए आन खड़ी हुई, क्योंकि ‘आज’ को 31 दिसंबर नाम दे दिया गया और जनवरी से दिसंबर की निरंतरता में आया सबसे आखिर दिन समझा गया! चीजों को निरंतरता में देखने का यह अभ्यास हमें ‘आज’ में नहीं जीने देता. आज के दिन को कोई नाम नहीं दें, जाते हुए साल का आखिरी दिन या आनेवाले साल की शुरुआत का एक संकेत नहीं मानें, तो फिर हमारे लिए संभावनाओं के अनगिनत द्वार खुलते हैं. हम सोच सकते हैं कि आज का दिन भले ही बीते हुए दिनों की छाया में खड़ा है, तो भी यह एक अनूठा दिन है.

इस दिन का सूरज निकलने की अगर हजार वजहें बीते हुए कल के आसमान में हैं, तो भी कोई एक वजह तो है जो पौ फटी है और सूरज फिर से उगा है. यह हमारे आज को नया करता सूरज है.

याद कीजिए, राममनोहर लोहिया को. लोहिया ने भारत माता से शिव सरीखा मस्तिष्क मांगा! शिव लोहिया की नजर में ‘असीम तात्कालिकता की महान किंवदंती’ हैं, यानी एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने कोई भी काम ऐसा नहीं किया, जिसका प्रयोजन अतीत या भविष्य में छुपा हो.

लोहिया ने लिखा है कि शिव के हर काम का कारण और प्रयोजन उसी काम में निहित है. शिव इसी से ‘महाकाल’ हैं, उनका ओर-छोर ब्रह्मा और विष्णु नहीं खोज पाते, लेकिन यही शिव गणेश की परिक्रमा के भीतर बंध जाते हैं.

आज का दिन भी अपना ओर-छोर नहीं, बल्कि एक गणेश परिक्रमा खोजता है. आज के दिन को पाना है, तो उसे अपने बीते हुए तमाम दिनों की कैद से मुक्त कीजिए, आनेवाले बेशुमार दिनों की अपेक्षाओं से अलग रखिए. कोई एक वजह खोजिए, जो आपके आज को अनोखा बनाता हो और इस अनोखेपन को साकार करने के लिए चली आ रही लीक से हट कर कुछ नया रचिए!

जिस दिन आप अपने हर ‘आज’ को नया मानने लगेंगे, हर दिन कुछ नया रचने की कोशिश करने लगेंगे, आनेवाला हर दिन, हर साल आपके लिए खुद-ब-खुद नया होता चला जायेगा. रोमियो कहता है, ‘हैन्सफोर्थ, आइ नेवर विल बी रोमियो’! अतीत की मुट्ठी में कैद करनेवाले अपने नाम को तज कर ही जीवन की नयी दीक्षा मिलती है, आखिर अपनी परंपरा में मनुष्य पर द्विज होने की जिम्मेवारी डाली गयी है!

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