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नयी सुबह का संदेश

नया सबेरा बिल्कुल इसी तरह होता है- एकदम चुपके से! आश्चर्य कि चुप्पी के बावजूद फैलता हुआ प्रकाश सब कुछ नया कर देता है, एक क्रांति उत्थान-पतन की किसी गर्जना के बगैर घटित होती है. नदी का बहता हुआ पानी, पोखर का ठहरा हुआ जल, पेड़ की फुनगी पर पसरी हुई नमी, फूल की पत्ती […]

नया सबेरा बिल्कुल इसी तरह होता है- एकदम चुपके से! आश्चर्य कि चुप्पी के बावजूद फैलता हुआ प्रकाश सब कुछ नया कर देता है, एक क्रांति उत्थान-पतन की किसी गर्जना के बगैर घटित होती है. नदी का बहता हुआ पानी, पोखर का ठहरा हुआ जल, पेड़ की फुनगी पर पसरी हुई नमी, फूल की पत्ती पर सहमी हुई ओस- सब एकबारगी जम्हाई तोड़ कर जागते हैं, अपनी ताकत और चाहत भर एकाएक चमकने लगते हैं.
हर घोंसले में कलरव, हर टहनी पर आकाश नाप लेने को आतुर पंख फड़फड़ाते पखेरू!सबेरा आसमान की तरफ से धरती को भेजा गया जागरण का संदेशा है. सुबह की शंखध्वनि कहती है मंदिर के देवता जाग गये हैं और अपने आशीर्वाद बरसा रहे हैं. मसजिद की अजान कहती है एक नूर उतरा है आसमान से, अब उठो और इस नूर को अपनी आंखों में भर लो. बीती को बिसारो, आगे की सुध लो! इस संदेश के बाद भी जो नहीं जागते, उनका क्या किया जाये?
बेसुध सोनेवालों को जगाने के लिए एक कवि ने सुझाया है रास्ता. ऋतुराज कहलानेवाला बसंत ऐसी ही एक सुबह सोया रह गया था. और, तब प्रकृति के नियम के विरुद्ध जाता देख गुलाब ने उसे एक प्यार भरी चोट मारी थी.
देव कवि ने लिखा- ‘मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी देत.’ चाहे शाहे-वक्त ही क्यों न हो, सुबह की अवहेलना करे तो फिर उसे भी जगाना पड़ता है, भले ही चटकारी में गुलाब इस्तेमाल करने पड़ें, क्योंकि हर सबेरे जिंदगी के लिए एक नयी राह खुलती है. इस अवसर की अवहेलना करने की छूट किसी को नहीं. और फिर, यह कोई ऐसा-वैसा सबेरा थोड़े ही है, नये साल का सबेरा है. एक ऐसा सबेरा जिसने बड़े चुपके से दो देशों के दिलों के बंद दरवाजे एक प्यार भरी पहल का सहारा पाकर खोल दिये हैं.
वसंत की तरह गुलाब की चटकारी देकर जगाना नहीं पड़ा, मैत्री के विवेक ने जोर मारा और दो मुल्कों के नीति-नियंता जाग गये. आज से पहले कौन कह सकता था भला कि पाकिस्तान के नवाज शरीफ के सर पर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के हाथों भेंट की गयी गुलाबी पगड़ी होगी! नयी साल की नयी सुबह का संदेशा नवाज शरीफ ने पढ़ लिया है- उन्होंने कहा है कि यह ‘आपसी रंजिश को किनारे रख देने का एकदम सही समय है’. जी हां, आपने ठीक समझा कि नये साल का नया सबेरा हमेशा नयी राह खोलने और मोहब्बत और इंसानियत के रास्ते पर बढ़ने के लिए सही समय होता है.
पर, बरस के आगाज के पुरउम्मीद जश्न में बीते साल के जख्मों, नाकामियों, तबाहियों और दुखों के दर्द को भी तो भूला नहीं जा सकता है. उनकी टीस हमें यह अहसास कराती है कि नये साल में उनसे सीखना है, उन्हें दुरुस्त करना है, बाकी रह गये कामों को अंजाम देना है और उनसे उबरने का हौसला रखना है. इस लिहाज से नये साल के हर लम्हे को नयी ताजगी और नये भरोसे से लबरेज रखना है. शायर नजीब अहमद ने क्या खूब बयान किया है- ‘हर एक सांस नया साल बन के आता है/कदम कदम अभी बाकी है इम्तिहां मेरा’. वक्त तो लगातार गति में है, पर हमारे जिम्मे चलना है, ठिठकना है, ठहरना है, फिर चलना है.
रास्तों पर कदमों के निशान दर्ज करने हैं, अब तक तय दूरी का हिसाब रखना है, आगे की राह के लिए जज्बा और जुगत जुटाना है. कैलेंडर बदलना रिवाज भर नहीं है, न ही बीती को बिसार कर आगे की सुधि लेने का सपाट यंत्र. इसी वजह से नये साल के कैलेंडर में बीते साल और अगले साल की तारीखों के भी कोने होते हैं. व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के बतौर और वैश्विक समुदाय का हिस्सा होने के नाते आज का दिन यह अहद करने का मौका भी है कि हम सुकून और पुरअमन माहौल के लिए पूरी कोशिश करेंगे ताकि हमारे सपनों, चाहतों और उम्मीदों को हकीकत का दामन मिले. यह कसम उठाने का दिन भी है कि हमें धरती को पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों, परिंदों और चरिंदों से भरा-पूरा रखना है, ताकि उसकी गोद में आदमी सुख और चैन से बसर कर सके.
हवा और पानी के साथ दिलो-दिमाग को भी खराब होने से बचाना है. कहना है, पर सुनना भी है. बोलना है, पर गुनना भी है. अपनी खुशी पर मुस्कराना है, तो दूसरों के दर्द भी बांटने हैं. वक्त ने नया कलेवर डाला है, हमारी हसरतों को जोश मिला है, नया साल शुरू हुआ है.

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