दिवालिया कांग्रेस

राजनीतिक दिवालियेपन का शिकार कांग्रेस एक ऐसे मुकाम पर आ पहुंची है, जो उसके अस्तित्व के साथ-साथ देश के लिए भी खतरनाक है. इस पार्टी की अजीब स्थिति हो गयी है. इसने संसद के दो लगातार सत्रों में बेमानी मुद्दों पर कामकाज को बाधित किया और अनेक जरूरी विधेयकों को पारित नहीं होने दिया. समूचा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 4, 2016 1:01 AM

राजनीतिक दिवालियेपन का शिकार कांग्रेस एक ऐसे मुकाम पर आ पहुंची है, जो उसके अस्तित्व के साथ-साथ देश के लिए भी खतरनाक है. इस पार्टी की अजीब स्थिति हो गयी है. इसने संसद के दो लगातार सत्रों में बेमानी मुद्दों पर कामकाज को बाधित किया और अनेक जरूरी विधेयकों को पारित नहीं होने दिया.

समूचा देश पंजाब के पठानकोट में स्थित वायु सेना के ठिकाने पर हुए आतंकी हमले में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि दे रहा है और इस हमले से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर सोच-विचार कर रहा है, लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए बेतुका रुख अपना रही है. जब हमारी सुरक्षा एजेंसियां हमलावरों का मुकाबला कर रही थीं, तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया लाहौर यात्रा और पाकिस्तान नीति से लेकर सुरक्षा और इंटेलिजेंस संबंधी खामियों पर दोष मढ़ने में लगे हुए थे. देश की सबसे पुरानी पार्टी और सबसे अधिक समय तक सत्ता में रही कांग्रेस की निरंतर पतनशीलता का यह एक और उदाहरण है. व्यक्ति और समाज के चारित्रिक गुणों तथा चुनौतियों का सामना करने की उनकी क्षमता का परीक्षण विपत्तियों में ही होता है.

जब विपत्तियां आतंक के रूप में सामने आती हैं, तब राष्ट्र की एकता, सामूहिकता और साहस कसौटी पर होते हैं. पंजाब के पठानकोट में वायु सेना के ठिकाने पर हुआ आतंकी हमला हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक और वार है. इस हमले का सामना करते हुए अब तक कई सुरक्षाकर्मी अपनी जान दे चुके हैं और अनेक घायल हैं. सैन्य ठिकाने को पूरी तरह से सुरक्षित करने की कोशिशें अब भी जारी हैं. ऐसे में जाहिर है कि राजनीतिक दिवालियापन का शिकार कांग्रेस एक ऐसे मुकाम पर आ पहुंची है, जो उसके अस्तित्व के साथ-साथ देश के लिए भी खतरनाक है. इस पार्टी की अजीब स्थिति हो गयी है. इसने संसद के दो लगातार सत्रों में बेमानी मुद्दों पर कामकाज को बाधित किया और अनेक जरूरी विधेयकों को पारित नहीं होने दिया.

आतंकवाद और पड़ोसी देश से संबंधों की बात करें, तो कांग्रेस को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि आखिर हालात इस कदर क्यों बिगड़े. क्या इस पार्टी के पास इन मसलों को लेकर कोई ठोस समझ है, और अगर है, तो वह सरकार में रहते हुए क्या कर सकी? आज भी जब वह मौजूदा सरकार की आलोचना कर रही है, तो उसके पास देश के सामने पेश करने के लिए कौन-से नीतिगत विकल्प हैं? जहां तक अपहृत विमान यात्रियों की जान बचाने के लिए वाजपेयी सरकार द्वारा आतंकी सरगना मसूद अजहर को छोड़ने का मामला है, तो यह समझना होगा कि कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं, जिनके कारण अवांछित फैसले लेने पड़ते हैं. मोदी सरकार की नीतियों पर आपत्तियों और असहमतियों को कांग्रेस देश के सामने विस्तार से क्यों नहीं रख रही है? उसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद और अलगाववाद समेत राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी तमाम समस्याएं कांग्रेस की दोषपूर्ण नीतियों का ही नतीजा हैं. दरअसल, कांग्रेस इन सवालों पर गंभीर ही नहीं है और उसका इरादा बस सरकार को कटघरे में रख कर राजनीतिक रोटियां सेंकने का है.

कांग्रेस विपक्षी पार्टी के रूप में संसद के भीतर और बाहर अपनी भूमिका को निभाने में विफल रही है. कांग्रेस को यह समझने की जरूरत है कि अगर पाकिस्तान से बातचीत बहाल करने की कोशिशें नाकाम हुईं, तो यह आतंकवादियों के उद्देश्यों की ही सफलता होगी. यह भी जरूरी है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियां ऐसे हमलों की स्थिति में देश को समय-समय पर जानकारी देती रहें. ऐसा नहीं होने के कारण मीडिया और थोक के भाव से मौजूद कथित विशेषज्ञ अलग-अलग राय देने लगते हैं जिससे पब्लिक स्फेयर में भ्रम की स्थिति बनती है और माहौल विषाक्त होता है. इसी तरह से पठानकोट हमला पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए भी सबक है कि वे इस भयावह खतरे का मुकाबला लापरवाही और दोहरेपन से नहीं कर सकते हैं. भारत की तरह पाकिस्तान भी आतंक का दंश झेल रहा है.

उसकी सड़कों पर भी खून बह रहा है, पर उसने मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे दहशतगर्दों को खुलेआम घूमने की आजादी दे रखी है. दोनों देशों में और उनके बीच शांति के लिए जरूरी है कि ऐसे हिंसात्मक तत्वों के प्रति कठोर रवैया अपनाया जाये. अमन-चैन के लिए वार्ताओं को रोकने और नजदीकियों को बढ़ने से रोकने के लिए आतंकी गुट और उनके कट्टरपंथी आका किसी भी हद तक जा सकते हैं. पठानकोट में हुआ हमला ऐसी ही एक कोशिश है. जहां पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के प्रति अपने रवैये में बदलाव की जरूरत है, वहीं, भारत में सरकार की कोशिशों के समर्थन में राष्ट्रीय सहमति बनाना अनिवार्य है. कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद अगर वह ऐसी गैरजिम्मेवाराना हरकतें करती रहीं, तो उसके अप्रासंगिक हो जाने में अधिक देर नहीं लगेगी.

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