जरूरी शुभकामनाएं, जो नहीं दी गयी हैं!

कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार मेरे शहर में आजकल नये साल की शुभकामनाओं वाले होर्डिंग माफियाओं तक ने लगा रखे हैं. उनके आधार पर मेरा विश्वास है कि आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं प्राप्त हुई होंगी. लेकिन क्या उनमें से एक भी वैसी है, जैसी आप चाहते थे? अगर नहीं, तो नीचे दी गयी शुभकामनाएं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2016 5:50 AM
कृष्ण प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
मेरे शहर में आजकल नये साल की शुभकामनाओं वाले होर्डिंग माफियाओं तक ने लगा रखे हैं. उनके आधार पर मेरा विश्वास है कि आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं प्राप्त हुई होंगी. लेकिन क्या उनमें से एक भी वैसी है, जैसी आप चाहते थे? अगर नहीं, तो नीचे दी गयी शुभकामनाएं पढ़िए और जो भी रास आये, स्वीकार कर लीजिए!
आप किसान हैं तो सारे देश को खिला कर खुद भूखे रह जाने के अभिशाप से मुक्ति की आपकी साधना इस साल सफल हो जाये. कोई कितना भी सरकाये, मगर आपके पैरों के नीचे से सरके नहीं आपकी जमीन, किसी के सामने भी आप दिखें नहीं दीन या हीन. आत्महत्याएं आपके तो क्या, आपके सहवासी गुबरैलों और ततैयों के निकट भी आने से घबराएं.
बढ़इयों के बसुले, लोहारों के हथौड़े, पागुर करती भैंसें, रम्भाती गायें, बैलों के साथ उनके कानों पर बैठ कर किलने निकालते कौए और फुदकती गौरैये, सब-के-सब आपके साथ झूमें और गायें. जिंदगी जीते और मौत हार जाये! मजदूर हैं, तो भी मजबूर नहीं रह जायें. कोई सरकारी पैकेज पायें या न पायें, अपनी बेड़ियों पर विजय पा जायें. आपका मेहनताना किसी की मर्जी न रहे, आपका हक बन जाये और उसे मारने की किसी की मजाल न हो पाये.
गरीब हैं, तो सरकार पूरे साल में एक बार भी आपको रियायतों या सब्सिडियों का मोहताज न बताये. अमीरी जब भी आपके मान-मर्दन पर उतारू हो, सरकार न उसके साथ खड़ी दिखे, न आपके घावों पर नमक छिड़कने पर उतर आये. अमीर हैं तो करों में छूट, रियायतें व सब्सिडियां चाहे पहले से भी ज्यादा ले जायें, मगर गरीबों की योजनाओं, दवाओं और राशनकार्डों की लूट में शामिल होते हुए थोड़ा शरमाएं.
नेता हैं, तो खुदा करे, बेहिसाब भाषणों का आपका व्यापार जल्द-से-जल्द डूब जाये और आप फौरन से पेशतर नये विचारों का कारोबार शुरू कर पायें. पर्यावरण के प्रदूषण पर चिंतित हों, तो दूषित चेतनाओं और विचारों से हो रहे नुकसान सोच कर भी आपके माथे पर पसीना आये. इस साल आपको इतनी सद्-बुद्धि आये, कि ऐसी चेतनाओं का लाभ लेकर जीतने के बजाय चुनाव हार जाना कुबूल कर पायें.
आम आदमी हैं तो तूफान और सुनामियां चाहे सब कुछ छीन ले जायें, मगर आपकी आशाओं की कलाई न मरोड़ पायें. पुराना या नया कोई क्लेश नहीं सताये. जो भी हो, रंग-रूप, भाषा-भूषा या वेश और कितने भी विपन्न हों आप, मगर सहज मानवीय गरिमा व आत्मसम्मान से संपन्न रहें. छोटा या बड़ा, कोई भी त्योहार आपको मुंह नहीं चिढ़ाये, बाजार को आपके घर के अंदर न घुसाये. न महंगाई गरदन मरोड़े, न ही आपकी कमर को झुकाये.
फेसबुकियों में हैं तो इतने सोशल हो जायें कि वर्चुअल मित्रों में उलझे रहने के बजाय एक्चुअल का हाल-चाल जानने का भी समय निकाल पायें. सवाल खड़े करनेवालों में हैं, तो भी कोई बुराई नहीं. इस साल आपके सवाल और बड़े हो जायें. लेकिन, उनके समाधान की उम्मीद से भरे हैं तो आपकी उम्मीदों को नये पंख लगने से कोई भी न रोक पाये.

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