भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो कोई पीना नहीं चाहता, मगर दूसरों को पिलाना सब चाहते हैं और पिला भी रहे हैं. पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार पर जो तमाशा हुआ है, वह देखने लायक है. अगर हम ईमानदारी से सोचें तो पायेंगे कि आज भ्रष्टाचार के बारे में बोलना, उस पर बहस करना एक फैशन बन गया है. दरअसल, आज हम जिस भ्रष्टाचार का रोना रो रहे हैं वो हम सबने मिल कर पैदा किया है.
उसमें अकेले सरकार का या सिस्टम का कसूर नहीं है. इसके लिए आम जनता भी उतनी ही दोषी है, जितना कि अन्य लोग. सोचने वाली बात यह है कि नेता, अफसर, पुलिस सब तो हमारे ही बीच के लोग हैं, तो वे हमसे अलग कैसे हो सकते हैं! एक बेईमान, भ्रष्ट, चोर भी चुनाव जीत जाता है, क्योंकि जनता कभी जाति-धर्म को ध्यान में रख कर तो कभी पैसे, साड़ी, लैपटाप, टैबलेट या शराब के लिए अपना वोट बेच देती है.
आशीष केशरी, ई-मेल से