बिखरती युवाशक्ति से टूटता राष्ट्र!
प्रत्येक राष्ट्र को उसकी युवा शक्ति पर नाज होता है. जोश, जज्बा व जुनून से परिपूर्ण यह वर्ग, राष्ट्र का भविष्य तय करता है. स्वामी विवेकानंद ने भी युवा पीढ़ी को राष्ट्र के उन्नयन में महत्वपूर्ण माना था. उन्होंने अपने उद्बोधन में सर्वगुण संपन्न युवाओं के जरिये देश की काया तक पलट देने की बात […]
प्रत्येक राष्ट्र को उसकी युवा शक्ति पर नाज होता है. जोश, जज्बा व जुनून से परिपूर्ण यह वर्ग, राष्ट्र का भविष्य तय करता है. स्वामी विवेकानंद ने भी युवा पीढ़ी को राष्ट्र के उन्नयन में महत्वपूर्ण माना था.
उन्होंने अपने उद्बोधन में सर्वगुण संपन्न युवाओं के जरिये देश की काया तक पलट देने की बात कही थी. भारतीय युवा क्षमतावान हैं, लेकिन मूल्यपरक, गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा के अभाव में युवाओं की क्षमता का जरूरी विकास नहीं हो पाया है. देश में गरीबी, बेरोजगारी का बढ़ता ग्राफ, युवाओं को प्रचलित शासन व्यवस्था के विरुद्ध रोष पैदा कर विरोध का मार्ग अख्तियार करने को विवश करती है, जिससे उग्रवाद, नक्सलवाद व आतंकवाद को पोषण मिलता है. ऐसे कृत्यों में युवाओं की भागीदारी देशहित में नहीं है. विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों के सेवन से युवाओं में चारित्रिक पतन हो रहा है.
देश के भविष्य के रूप में देखे जानेवाले युवा लक्ष्य से भटक रहे हैं. सामाजिक ताना-बाना व मान-मर्यादा का ख्याल किये बिना असामाजिक कृत्यों की ओर युवाओं का बढ़ता कदम राष्ट्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है. इन सभी समस्याओं का मुख्य कारण सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट का आना है.
यूं तो, हमारा देश आदिकाल से ही सांस्कृतिक विविधताओं का धनी रहा है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण युवा वर्ग भारतीय संस्कृति के प्रति उदासीन हो रहा है. भारतीय संस्कृति की रीढ़ कही जानेवाली संयुक्त परिवार की व्यवस्था आज छिन्न-भिन्न हो चुकी है. एकाकी जीवन का आदी युवा सामाजिक जीवन से मुंह मोड़ रहा है.
यही एकाकीपन उसे नशा और अपराध के संसार में धकेल रहा है. इस तरह, सक्षम युवाशक्ति के बिखराव से देश टूट रहा है. भारत को सभी समस्याओं से मुक्ति दिला कर, ‘विश्वगुरु’ बनने की ओर प्रतिबद्धता दिखानी होगी.
– सुधीर कुमार, गोड्डा