शुक्रिया प्रणव!
‘खम ठोक-ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’- मनुष्य के भीतर छिपी संभावनाओं को लक्ष्य कर राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखी ये पंक्तियां. आज यही पंक्तियां बदले हुए प्रसंग और परिवेश में मुंबई के क्रिकेटर प्रणव धनावड़े के रूप में साकार हो उठी हैं. […]
‘खम ठोक-ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’- मनुष्य के भीतर छिपी संभावनाओं को लक्ष्य कर राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखी ये पंक्तियां.
आज यही पंक्तियां बदले हुए प्रसंग और परिवेश में मुंबई के क्रिकेटर प्रणव धनावड़े के रूप में साकार हो उठी हैं. धैर्य ऐसा कि 365 मिनट तक क्रीज पर पैर टिके रहे, चौकसी ऐसी कि 323 गेंदों में से एक भी उसके बल्ले की धार को ना चीर सकी और बाजुओं-कलाइयों के जौहर में कमाल कुछ ऐसा कि चौकों के शतक और छक्कों के अर्धशतक की आंधी पर सवार इस लड़के की रफ्तार 1009 रनों के उस हिमालयी ऊंचाई पर जाकर भी जारी रही, जहां पहुंचने में क्रिकेट के फरिश्तों को भी न जाने कितने साल लगेंगे और न जाने कितना पसीना बहाना पड़ेगा. मुंबई के स्कूली क्रिकेट के भीतर कीर्तिमानों का बनना-टूटना कोई नयी बात नहीं. सचिन तेंडुलकर और विनोद कांबली की बल्लेबाजी की रिकॉर्ड साझेदारी को अरमान जाफर और सरफराज खान ने तोड़ा था. फिर इस जोड़ी से भी बड़ी रेखा खींच कर दिखायी पृथ्वी शॉ ने, जिसका रिकाॅर्ड कुछ कम हैरतअंगेज ना था.
दो साल पहले पृथ्वी शॉ ने अद्भुत कारनामा करते हुए एक पारी में 546 रन बनाये, जो कि दुनिया में बीसवीं सदी में कोई भी बल्लेबाज क्रिकेट के किसी भी रूप में ना बना सका था. लेकिन, अब प्रणव के बल्ले ने जो जादू दिखाया है, उसका जोड़ तो क्रिकेट खेलनेवाले देशों के पूरे इतिहास में कहीं नहीं मिलता. प्रणव ने 117 साल पुराने विश्व-कीर्तिमान की चमक को एकबारगी फीका कर दिया.
1899 में इंग्लैंड के आॅर्थर काॅलिन्स ने 628 रन की पारी खेली थी, लेकिन प्रणव के 1009 रनों की पारी के आगे काॅलिन्स के बनाये रन अब कुछ वैसे ही जान पड़ते हैं, जैसे गुलिवर के आगे लिलिपुट. एक ऑटो ड्राइवर का बेटा 15 साल का प्रणव नये और बढ़ते भारत का एक प्रतीक है, एक ऐसा युवा भारत जहां निम्न मध्यवर्गीय घरों में पड़ी प्रतिभाएं बस अपने खोजे जाने का इंतजार कर रही हैं, जिन्हें गुणी हाथों से होनेवाली तराश के लिए एक अवसर की तलाश है.
यह पीढ़ी दुनिया को बेहतरी के लिए पलक झपकते बदल देने का माद्दा और इरादा रखती है. प्रणव धनावड़े किसी एक लड़के का नाम भर नहीं, उठान मारते विजयी भारत का उद्घोष है! शुक्रिया प्रणव, तुमने फिर से बताया कि ताकत और कुछ नहीं, सिर्फ उम्मीदों का नाम है, उम्मीदें जिन्हें हमेशा बढ़ते जाना है.