रोजगार की चिंता
कभी देश का ‘समयपाल’ कही जानेवाली एचएमटी घड़ियां अब इतिहास का हिस्सा हो जायेंगी. केंद्र सरकार ने सन् 2000 से घाटे में चल रही एचएमटी वाचेज और उसकी दो इकाइयों (एचएमटी चिनार वाचेज और एचएमटी बेयरिंग्स) को बंद करने का निर्णय किया है. कंपनी में उत्पादन 2014 से ठप था. सरकार ने भारी उद्योग मंत्रालय […]
कभी देश का ‘समयपाल’ कही जानेवाली एचएमटी घड़ियां अब इतिहास का हिस्सा हो जायेंगी. केंद्र सरकार ने सन् 2000 से घाटे में चल रही एचएमटी वाचेज और उसकी दो इकाइयों (एचएमटी चिनार वाचेज और एचएमटी बेयरिंग्स) को बंद करने का निर्णय किया है.
कंपनी में उत्पादन 2014 से ठप था. सरकार ने भारी उद्योग मंत्रालय के अधीन पांच अन्य सार्वजनिक उपक्रमों पर भी ताला जड़ने का फैसला किया है. इस मंत्रालय के तहत 31 उपक्रम हैं, जिनमें 12 लाभ में, जबकि 19 घाटे में चल रहे हैं. सरकार के मुताबिक, निरंतर घाटे में चल रहे उपक्रमों में कुछ विनिवेशित किये जा रहे हैं, तो कुछ बंद हो रहे हैं. कुछ ऐसे उद्योग भी हैं, जिन्हें पुनर्जीवित कर फायदे में लाने की कवायद हो रही है. आर्थिक सुधारों को गति और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने से जुड़ी कोशिशों में सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका एक बड़ा मुद्दा है.
इस बात पर लगभग सहमति है कि घाटे में चल रहे उपक्रमों को आवश्यकतानुसार विनिवेशित या बंद कर दिया जाये, क्योंकि घाटे का सौदा देश की वित्तीय सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह है. लेकिन, इस प्रक्रिया में रोजगार देने और जरूरी चीजों के उत्पादन में सरकारी कंपनियों के योगदान का महत्व भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.
यह संतोष की बात है कि सरकार हर उपक्रम की समस्याओं को समझते हुए फैसले ले रही है और कुछ कंपनियों को प्रबंधन तथा तकनीक के स्तर पर बेहतर बना कर लाभप्रद स्थिति में पहुंचाने की कोशिश हो रही है. कोई भी उद्यम जब बंद होता है, तब उसका नकारात्मक असर रोजगार पर पड़ता है. इसका असर उन लोगों पर भी होता है जो उस उपक्रम के उत्पादन और सेवा में परोक्ष रूप से जुड़े होते हैं.
अगर 2011 की जनगणना के आंकड़ें देखें, तो देश में 11.6 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में हैं, जिनमें 8.4 करोड़ साक्षर व 3.2 करोड़ निरक्षर शामिल हैं और बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर 9.6 फीसदी है. गत पांच वर्षों के विकास के बावजूद इस स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है, क्योंकि आर्थिक वृद्धि का रुझान रोजगार के अवसर बढ़ाने की ओर बहुत अधिक नहीं रहा है.
ऐसे में यह जरूरी है कि यदि एक कंपनी वित्तीय मजबूरियों के कारण बंद करनी पड़े, तो उसकी जगह कोई नया उद्यम स्थापित किया जाये, ताकि रोजगार के अवसर न सिर्फ बने रहें, बल्कि बढ़ें भी. रोजगार, उत्पादन और मांग में बड़ा गहरा संबंध होता है और इसी संबंध पर आर्थिक विकास भी निर्भर करता है. उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से पहल करते हुए रोजगार-सृजन को प्राथमिकता देगी, ताकि युवा आबादी की क्षमता का सकारात्मक उपयोग किया जा सके.