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तरक्की व तजुर्बे की मिसाल थे मुफ्ती
तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा मुफ्ती मोहम्मद साहब- जिन्होंने कश्मीरियत को जिया. मुफ्ती साहब से मिलने पिछले हफ्ते ही नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान गया था. वे आइसीयू में भरती थे. इलाज कर रहे डॉक्टरों से बातचीत हुई. कुछ देर मैं वहीं बैठा रहा. मुफ्ती साहब का मुझ पर हमेशा स्नेह रहा. जब […]
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
मुफ्ती मोहम्मद साहब- जिन्होंने कश्मीरियत को जिया. मुफ्ती साहब से मिलने पिछले हफ्ते ही नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान गया था. वे आइसीयू में भरती थे.
इलाज कर रहे डॉक्टरों से बातचीत हुई. कुछ देर मैं वहीं बैठा रहा. मुफ्ती साहब का मुझ पर हमेशा स्नेह रहा. जब कभी हम श्रीनगर गये, ऐसा एक मर्तबा भी नहीं हुआ कि उनके साथ बिना खाना-नाश्ता किये हम दिल्ली लौटे हों. याद रहेंगी उनके बगीचे की चेरियां, तोड़ कर खिलवाते थे. एक बार उन्होंने महबूबा से कहा, देखो चेरी लिये बिना जाने मत देना.
पिछली बार जब भाजपा और पीडीपी गंठबंधन की सरकार बनी, उसके बाद मुझे श्रीनगर जाने का मौका मिला. उस समय वह थोड़ा अस्वस्थ्य चल रहे थे. लेकिन, शाम के वक्त उन्होंने घर बुलाया और हम साथ बैठे. उन्होंने कहा अब बताओ कैसा लग रहा है. मैंने कहा देखिए, यह कश्मीर के लिए बहुत बड़ी बात हो गयी. आप कैसा महसूस कर रहे हैं? मुफ्ती साहब बोले-कश्मीर के लिए इससे बड़ी बात कुछ हो नहीं सकती. मैंने तय किया कि भले ही वैचारिक मतभेद होंगे.
लेकिन, जम्मू-कश्मीर और हिंदुस्तान के लिए यह प्रयोग भी होना चाहिए. उन दिनों मैं तमिलनाडु में तिरुवल्लुवर संत के विषय में एक अभियान किये हुए था. मेरे साथ संत तिरुवल्लुवर का एक बड़ा चित्र भी था. मैंने वह चित्र उन्हें देते हुए कहा-मुफ्ती साहब, दो हजार साल पहले ये तमिल भाषा के महान संत कवि हुए.
इनके बारे में कश्मीर में जानना बहुत अच्छा रहेगा. हिंदू-मुसलमान दोनों ही संत तिरुवल्लुवर की वाणी को मानते हैं. मुफ्ती साहब ने खड़े होकर संत का चित्र स्वयं लिया और कमरे में जो सबसे प्रमुख जगह थी, वहां संत तिरुवल्लुवर का चित्र लगा कर उन्होंने कहा कि यहां के विश्वविद्यालयों के लिए हम जरूर इनकी पुस्तकें मंगवाएंगे. आपका जो प्रपोजल उसे आप मुझे औपचारिक रूप से भेज दीजिएगा.
उनको देख कर मैं दंग रह जाता था. कहीं किसी के प्रति स्वभाव में कटुता नहीं रही. सरकार बनने के बाद उनका यही कहना था कि विजय साहब ये गंठबंधन चलना चाहिए. अगर हिंदुस्तान और कश्मीर के खिलाफ बातें करने वाले लोग हैं, इनको शिकस्त देनी है तो यह गंठबंधन चलना जरूरी है. इसके लिए आपकी भी जिम्मेवारी बहुत बड़ी है. क्योंकि आपकी दिल्ली में सरकार है.
गंठबंधन के बाद कश्मीर के लोगों में यह बड़ी उम्मीद जगी है कि दिल्ली में भाजपा के होने से उनकी मुश्किलातें दूर हो जायेंगी. उनको पहले ज्यादा अच्छी मदद मिलेगी और यहां जो बेरोजगारी और पिछड़ापन है, वह दूर होगा. इसलिए ध्यान रखिये कि सिर्फ हम विकास की बात करें. मुफ्ती साहब को हमेशा यह अंदेशा रहता था कि कहीं किसी के मुंह से ऐसी बात न निकल जाये, जो अतिवादी है. उन्होंने कहा कि देखिये, भावुकता में कुछ कह देना आसान होता है. विजय साहब आप लोग कुछ भी भावुकता में कह देंगे, तो हम लोग भावुकता में और बात करेंगे, तो ये जो बन रहा पुल है, वहीं ढह जायेगा. यहां बड़े संयम जरूरत है.
इतनी परिपक्वता के साथ वे अपनी बातों को रखते थे कि लगता था कि उनके मन में जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान की जनता है. चलते समय उन्होंने कहा मैं इस गंठबंधन के लिए राजी नहीं होता, अगर मेरा वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा नहीं होता. मैं उन पर दो सौ प्रतिशत भरोसा करता हूं.
मुझे पूरा यकीन है कि वे कश्मीर में एक नया अध्याय लिखेंगे. मुझे मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी के साथ गंठबंधन सरकार बनाने पर जम्मू-कश्मीर में बहुत आलोचना हुई. उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की. मेरा उनसे तब से संबंध है, जब मैं पाञ्चजन्य में संपादक था. सब जानते हैं कि हमारी विचारधारा और उनकी विचारधारा में कितना अधिक तीव्र मतभेद है. जब मैं रुबिया सईद कांड पर बहुत तीखा लिखा था.
मुझे यह भी याद है कि तब अटल जी ने मुझसे कहा, वह पाञ्चजन्य के प्रथम पाठक हुआ करते थे, देखो भाई, आलोचना करना अपनी जगह ठीक है, लेकिन इतनी अतिवादी आलोचना भी मत करो कि कोई इतना परेशान हो जाये और वह खुद अतिवादी भाषा बोलने लगे. जो अतिवादिता थी, उसको हमने छोड़ा. सवाल यह है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद साहब जब दिल्ली में भी थे, तो भी वे उन लोगों से बराबर मिलते थे, जिनके साथ उनके मतभेद होते थे.
मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य भी होता था. वे बोले विजय साहब देखिए, जिंदगी कितने दिन की. नफरतें करना बहुत आसान है. अगर दो बात, दो लफ्ज मोहब्बत के जबान से निकल गये और दूसरों के साथ आपकी दोस्ती हो गयी, तो इसमें मेरा क्या नुकसान हुआ. अच्छी बात करके मैंने ही खुद की धारणा बदल ली हो, ऐसा तो नहीं हुआ.
उन्होंने एक बार कहा-देखिए, हर आदमी लोकतांत्रिक ढंग से अपने-अपने चुनाव क्षेत्र की ओर मुखातिब होता है. यह बड़ी गहरी बात है किसी की समझ में आयेगी, शायद किसी के समझ में न भी आये.
चुनाव क्षेत्र का भी अपना एक दबाव होता है. आप जिस क्षेत्र से सांसद बनेंगे, तो उस क्षेत्र की बात तो करेंगे ही. जब हम जम्मू-कश्मीर में जाते हैं, तो जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ बैठना-उठना, उनकी बात समझना और उनकी भावनाओं को व्यक्त करना होता है. आप लोग ‘कश्मीर हमारा है यह तो कहते हैं, लेकिन कश्मीरी हमारे हैं’, इस बात को क्यों नहीं समझते. मैं उनकी ओर देखता रह गया. यह बात मेरे मन को गहरे छू गयी.
मुफ्ती मोहम्मद सईद साहब का भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट योगदान रहा. वह इस कारण कि जम्मू-कश्मीर के होते हुए भी उनका व्यक्तित्व अखिल भारतीय बना रहा. उनका देश के सभी पार्टियों के साथ मेल-जोल था. जम्मू-कश्मीर में विकास के लिए सब लोगों से बात की, वह मुंबई भी गये. उन्होंने प्रदेश में पूंजी निवेश बात की.
महबूबा जी को भेजा और उनसे भी तमाम मुद्दों पर बात हुई. वे हमेशा से यही कहते थे कि हमारा प्रयास होना चाहिए. पिछले तमाम सालों से जो ये दहशतगर्दी और खून-खराबा हुआ है, उसकी वजह से पिछड़ापन आया और लोगों मनोबल गिरा. उसको कैसे आगे बढ़ाएं. खुदा के लिए तरक्की और नये तजुर्बे के अलावा कोई और बात न करो. उसकी वजह से बाकी मसले धरे रह जायेंगे. मुफ्ती साहब राजनीति में एक ऐसा निशान छोड़ गये हैं, जिसे भर पाना बहुत मुश्किल होगा.
उनके बारे में कहा जता है कि बीजेपी के साथ हाथ मिलाएंगे, यह संभव ही नहीं हो सकता. उन्होंने मोदी जी का साथ दिया. मुझे विश्वास है कि मुफ्ती जी की जो विरासत है उसे कश्मीरी और जम्मू-कश्मीर के लोगों आगे लेकर जाएंगे. सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि जम्मू-कश्मीर अमन के रास्ते पर चलते हुए तरक्की और खुशहाली हासिल करे.
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