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खेती की चिंताएं

जाड़े के मौसम के जल्दी बीत जाने और कम ठंड पड़ने के कारण रबी के फसल को लेकर चिंताएं बढ़ गयी हैं. लगातार दो मॉनसून के कमजोर रहने और प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों से जूझ रही खेती के लिए यह निराशाजनक स्थिति है. हालांकि, मौसम के सूखा होने और सामान्य से पांच डिग्री कम तापमान का […]

जाड़े के मौसम के जल्दी बीत जाने और कम ठंड पड़ने के कारण रबी के फसल को लेकर चिंताएं बढ़ गयी हैं. लगातार दो मॉनसून के कमजोर रहने और प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों से जूझ रही खेती के लिए यह निराशाजनक स्थिति है. हालांकि, मौसम के सूखा होने और सामान्य से पांच डिग्री कम तापमान का तुरंत असर होता नहीं दिख रहा है, पर आशंका जतायी जा रही है कि ठंड का मौसम अपने समय से पहले ही बीत सकता है. कमजोर मॉनसून के कारण इस वर्ष रबी फसल की खेती में पहले ही पांच फीसदी की कमी हो चुकी है.

वर्ष 2015 में 496.58 लाख हेक्टेयर में फसल लगायी गयी है, जबकि 2014 में 525.23 लाख हेक्टेयर में रबी की खेती हुई थी. गेहूं की बुवाई में 10 फीसदी की कमी हुई है. तेलहन और दलहन की खेती की हालत भी बहुत उत्साहजनक नहीं है. यह भी परेशानी का एक कारण है कि देश के 36 मौसम अनुमंडलों में से 25 में दिसंबर के मध्य में सामान्य से कम वर्षा हुई है. इन क्षेत्रों में कुल खेती का तीन-चौथाई इलाका है. ऐसी स्थिति में सरकार को समय रहते पर्याप्त तैयारी कर लेनी चाहिए, ताकि फसल उत्पादन में कमी का नुकसान किसान को न हो तथा ग्राहक भी महंगाई की बोझ से न दबे. देश में खाने-पीने की चीजों के खुदरा बाजार में बढ़ती मुद्रास्फीति से महंगाई रोकने की कोशिशें कामयाब नहीं हो सकी हैं.

जानकारों ने अंदेशा जताया है कि रबी फसलों की कम उपज से कीमतों में उछाल आ सकता है. इसे नियंत्रित करने के लिए सरकारों को न सिर्फ जमाखोरी पर अंकुश लगाना होगा, बल्कि उपज और पहले से भंडारित अनाज की समुचित उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा. इसके लिए अभी से ही जरूरी एहतियात कर लेने चाहिए. खाद्यान्न की कीमतें आंतरिक कारकों के साथ अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर भी निर्भर करती हैं.

तेलहन और गेहूं की कीमतें वैश्विक बाजार में भी बढ़ने की आशंका है. इस कारण भी महंगाई बढ़ सकती है. यह भी ध्यान रखना है कि चीनी का राष्ट्रीय उत्पादन तो 6.5 फीसदी अधिक हुआ है, पर महाराष्ट्र में कमी के कारण कीमतें कम नहीं हो पा रही हैं. इसके चलते चीनी व्यापारी निर्यात भी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि मुनाफा स्थानीय बाजार से ही आ जा रहा है.

कृषि उत्पादों के सही विपणन के प्रबंधन को दुरुस्त करने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है, पर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं. उपज और कीमतों में उथल-पुथल अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती हैं. उम्मीद है कि सरकारें इस संबंध में त्वरित पहल करेगी ताकि किसान और उपभोक्ता परेशान न हों.

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