अराजक विरोध!

लोकतंत्र की यह खासियत है कि इसमें अपनी बात कहने का अधिकार हर किसी को है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं यह आजादी भी देती हैं कि यदि किसी व्यक्ति-समाज की अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक आस्था या अन्य संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात हो रहा है, तो वह विरोध में आवाज उठाये, धरना-प्रदर्शन करे. लेकिन, विरोध के अधिकार की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 9, 2016 6:32 AM
लोकतंत्र की यह खासियत है कि इसमें अपनी बात कहने का अधिकार हर किसी को है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं यह आजादी भी देती हैं कि यदि किसी व्यक्ति-समाज की अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक आस्था या अन्य संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात हो रहा है, तो वह विरोध में आवाज उठाये, धरना-प्रदर्शन करे. लेकिन, विरोध के अधिकार की कुछ सीमाएं भी हैं.
विरोध की आड़ में उग्र प्रदर्शन, तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा के जरिये अराजकता फैलाने की इजाजत न तो कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था देती है, न ही किसी सभ्य समाज की ओर से इसे जायज ठहराया जा सकता है. लेकिन, दुर्भाग्य से हाल के दिनों में देश के विभिन्न इलाकों से अराजक प्रदर्शनों की खबरें बार-बार आ रही हैं. पहले ऐसी घटनाएं जहां राजनीतिक दलों-संगठनों के नेताओं-समर्थकों की ओर से होती थीं, वहीं अब खुद को समाज का पहरुआ बतानेवाले कुछ सामाजिक-धार्मिक संगठन से जुड़े लोग भी ऐसे तांडव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे हैं.
देश के किसी एक राज्य में कोई अनजान सा नेता कोई उन्मादी सांप्रदायिक बयान दे देता है और कई राज्यों में उसके खिलाफ उग्र प्रदर्शन, तोड़फोड़, आगजनी, लूटपाट शुरू हो जाती हैं. हिंसा और अराजकता के जरिये देश-समाज में मनभेद और विद्वेष पैदा करने की ऐसी कोशिशें चाहे जिस किसी धर्म-समुदाय, दल या संगठन के लोगों-समर्थकों की ओर से हो, इसकी न केवल कड़े-से-कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए, बल्कि प्रशासन को इनसे कड़ाई से निपटना भी चाहिए.
ऐसे अराजक प्रदर्शनों और जहर भरे बयानों की पुनरावृत्ति कानून-व्यवस्था की विफलता का भी परिचायक हैं. विभिन्न धर्मावलंबियों, भाषा-भाषियों की मौजूदगी के बावजूद अनेकता में एकता सवा करोड़ लोगों के देश भारत की वह खासियत है, जिसे पूरी दुनिया हैरतभरी निगाहों से देख रही है. सभी धर्मों-धर्मावलंबियों के प्रति सहिष्णुता का भाव राष्ट्रीय एकता की जरूरी शर्त है. देश आज गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी जिन बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है, देश-समाज में सद्भाव के बिना उनसे पार पाना संभव नहीं है.
सांप्रदायिक उन्माद भड़का कर देश-समाज की एकता में दरार पैदा करने की कोशिश, चाहे वह जिस किसी की व्यक्ति या संगठन की ओर से हो, भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर हमला मानी जानी चाहिए. ऐसे लोगों-संगठनों की कोशिशों को नाकाम करने के लिए देश-समाज को एकजुट होकर आगे आना होगा, तभी हम शांति और सौहार्द के साथ तरक्की की राह पर सबसे तेजी से बढ़ते देश की अपनी पहचान को कायम रख पाएंगे.

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