चुनाव खत्म तो महंगाई भी खत्म
।। संजय मिश्र।।(प्रभात खबर, पटना) राम निहोरा चचा अपने बेटे रिंटू को बड़े मनोयोग से समझा रहे थे. कह रहे थे- बेटा नया जमाना है. इस जमाने में जो दिखता है, वह होता नहीं है और जो होता है, वह दिखता नहीं है. रिंटू उनकी बातों पर अपना सिर ऐसे हिला-डुला रहा था, जैसे कुछ […]
।। संजय मिश्र।।
(प्रभात खबर, पटना)
राम निहोरा चचा अपने बेटे रिंटू को बड़े मनोयोग से समझा रहे थे. कह रहे थे- बेटा नया जमाना है. इस जमाने में जो दिखता है, वह होता नहीं है और जो होता है, वह दिखता नहीं है. रिंटू उनकी बातों पर अपना सिर ऐसे हिला-डुला रहा था, जैसे कुछ समझा और कुछ नहीं समझा. चचा भी कुछ-कुछ हारे हुए सिपाही की तरह मुंह बिचका कर उसे समझाना छोड़ आलू और प्याज की ढेरी सहेजने में जुट गये थे. मैं दूर से पूरा माजरा देख रहा था. सोचा, चलो बाप-बेटे के इस संवाद में कुछ मजा लिया जाए. सो, मैं निहोरा चचा की दुकान पर पहुंच गया. पूछा- चचा बेटवा बिगड़ गया क्या?
चचा ने लंबी सांस ली. थोड़ी देर चुप रहे. इधर-उधर देखा. मुंह खोलने से पहले पैर-पैंतरा बदलते हुए बोले- जमाना बदल गया है. रिंटूवा को समझा रहे थे, अब वो जमाना गया, जब कार वाले को देखकर हमलोग आलू-गोभी का दाम बढ़ा देते थे. कार में बैठी मैडम बैठे-बैठे आर्डर देती और हम कम-बेशी तौल कर उनकी कार में रख देते थे. अब तो कार वाले को देखिए तो समझिए ज्यादा तोल-मोल करने वाला ग्राहक आ गया. तोल-मोल पूरा करेगा और खरीदेगा पाव भर. वो जूता भले पांच हजार का खरीद ले, पर करेला में पांच रुपया छुड़वाने के लिए जान लगा देगा. कार में 500 रुपये का पेट्रोल भरवा लेगा, लेकिन रिक्शेवाले से 5-10 रुपये कम करवाये बिना मानेगा नहीं.
उनकी बातों में ज्ञान था. ज्ञान गंगा में कुछ और स्नान करने को मिले, इसके लिए मैंने उन्हें छेड़ा- ऐसा नहीं है चचा. मेरी बात चचा को पसंद नहीं आयी और वह फिर शुरू हो गये. माथे पर बल दिया और कहने लगे, अरे ऐसा ही है. यह न्यूटन का तीसरा नियम नहीं, निहोरा का पहला नियम है. नहीं यकीन आ रहा हो, तो आजमा कर देख लो. अब वो जमाना गया, जब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या का मुहावरा चलता था. अब तो फारसी पढ़ने वाला तेल ही बेचता है बचवा. अब देखो, मुलायम खांटी देसी आदमी है, लेकिन उनके प्रचार के लिए विदेशी गानों की धुन खरीदी जा रही है. नकटा-कहरवा छोड़ अमेरिकी रॉक एंड रोल पर उनका प्रचार होगा. और मोदी जी का तो जवाब ही नहीं है.
पटना के गांधी मैदान में पहुंचे. जान गये कि धमाके हो रहे हैं, तो कितना अच्छा-अच्छा बात बोले. थोड़ा बहुत इतिहास-भूगोल गड़बड़ाया, पर उतना तो चलता है. लोग कहने लगे कि विकास पुरुष है, विकास की बात कर रहा है. अब देखिए, कभी धारा 370 की बात कर रहे हैं, तो कभी कॉमन सिविल कोड की पैरवी. केजरीवाल को टीवी पर देखिए, मने-मने लड्ड फूट रहा है और चेहरा से पूरा सीरियस. चचा बोले चले जा रहे थे, तभी आवाज आयी-अरे! आलू-प्याज कैसे दिये? चचा बोल पड़े-अरे खूब लीजिए, चुनाव खत्म, महंगाई खत्म.