बलात्कार और हमारे बीच बैठा दानव
।। रविभूषण।। (वरिष्ठ साहित्यकार) गोवा में आयोजित विचारोत्सव (थिंक फेस्ट) के पहले दिन का विचार-विषय था सामाजिक और विवेकवान न रहने के बाद मनुष्य केवल पशु बन जाता है. प्रश्न लालसा और चेतना के संबंध का है. इन दोनों में कौन कब एक-दूसरे पर हावी होता है, यही सवाल प्रमुख है. पिछले एक वर्ष में- […]
।। रविभूषण।।
(वरिष्ठ साहित्यकार)
गोवा में आयोजित विचारोत्सव (थिंक फेस्ट) के पहले दिन का विचार-विषय था सामाजिक और विवेकवान न रहने के बाद मनुष्य केवल पशु बन जाता है. प्रश्न लालसा और चेतना के संबंध का है. इन दोनों में कौन कब एक-दूसरे पर हावी होता है, यही सवाल प्रमुख है. पिछले एक वर्ष में- 16 दिसंबर, 2012 की दिल्ली-घटना के बाद अपने-अपने क्षेत्र के शीर्षस्थ व्यक्तियों ने अपने आचरण और यौन-शोषण से हमारे समक्ष कई सवाल खड़े कर दिये हैं. धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में आसाराम बापू, मीडिया और बौद्धिक क्षेत्र में तरुण तेजपाल और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली सामान्य व्यक्ति नहीं हैं.
मध्यकालीन संतों ने कंचन-कामिनी त्याग करने की बात कही थी, जो अब संतों के लिए भी संभव नहीं है. प्राय: प्रत्येक क्षेत्र से यौन शोषण-उत्पीड़न करनेवालों की एक दीर्घ सूची प्रस्तुत की जा सकती है, जो हमें यह सोचने को बाध्य करती है कि क्यों एक विशेष दौर में ऐसे कुकृत्य बढ़े हैं और हमारी लालसाओं ने हमारी चेतना को किस प्रकार समाप्त किया है? यौन-शोषण और उत्पीड़न का सवाल एक बड़ा सवाल है, जिसे किसी सीमित दायरे और सोच से नहीं देखना चाहिए. तमाम कानूनों के बाद भी यौन-शोषण की संख्या बढ़ रही है और समाज का प्रत्येक वर्ग- बौद्धिक, लेखक सहित इसमें शरीक है. जयशंकर प्रसाद की कालजयी काव्यकृति कामायनी के काम सर्ग में बेचैन तृष्णा की बात कही गयी है- प्यासा हूं मैं अब भी प्यासा संतुष्ट आस से मैं न हुआ/ आया फिर भी वह चला गया तृष्णा को तनिक न चैन हुआ. अधेड़ावस्था हो या वृद्धावस्था, तृष्णा बढ़ती जाती है. अवचेतना की लिप्सा समय पाकर जग जाती है. चेतना लालसा के अधीन हो जाती है. चेतना के विकास और उन्नयन का शिक्षा, परिवार, परिवेश, समाज और जीवन-दर्शन से कोई संबंध शेष नहीं रह पाता.
पूंजीवाद र्निबध भोग को बढ़ाता है. पूंजीवादी संस्कृति में सबकुछ उपभोग के लिए है, बिकाऊ है. यह संस्कृति हमारा मानस निर्मित करती है. विश्वविद्यालयों में मानविकी (कला, साहित्य, दर्शन) और समाज विज्ञान का अध्ययन अब महत्वपूर्ण नहीं है. इसके स्थान पर व्यावसायिक पाठय़क्रम प्रमुख है. चेतना का व्यवसाय और व्यापार से संबंध नहीं है. हिंसा, अपराध, बलात्कार- सब पूंजीवादी संस्कृति से जुड़े हैं. यह संस्कृति कामनाओं और यौनेच्छाओं को बढ़ाती है. लोभ-लालच आज अधिक है. जोसेफ स्टिंग्लिट्ज ने अपनी एक पुस्तक में लालच के दशक पर विचार किया है. यूरोप और अमेरिका के पूंजीवाद में अंतर है. अमेरिकी पूंजीवाद ने अधिक आक्रामक ढंग से हमारी चेतना पर प्रहार किया है और हमारे मानस को बाजारोन्मुख एवं उपभोगोन्मुख बनाया है. अमेरिका के टामस जेफरसन, जिन्होंने स्वाधीनता घोषणापत्र लिखा, नीग्रो युवतियों को खरीद कर न केवल उसका भोग करते थे, अपितु वे भोगी हुई इन औरतों की बेटियों को, जो उनकी अपनी ही बेटियां थीं, वेश्यालयों में भेज देते थे. मीडिया का वर्तमान चरित्र अमेरिकी मॉडल पर है. जिस खोजी पत्रकारिता के लिए तेजपाल को जाना जाता है, वह खोजी पत्रकारिता अमेरिका में वाटरगेट कांड से अस्तित्व में आयी थी. इस खोजी पत्रकारिता के विकास-इतिहास और सत्ता के प्रति नजरिये-विचार को गंभीरता से देखने की जरूरत है. आवारा और लफंगी पूंजी का, उनिभू (उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण) का र्निबध उपभोग, ऐय्याशी व बलात्कार से भी संबंध है. घटना-विशेष और व्यक्ति-विशेष पर समस्त ध्यान केंद्रित कर हम समस्याओं के उद्गम-स्थल तक नहीं जा सकते. दुराचरण और मानसिक विकृतियां जिस दौर में अधिक बढ़ रही हैं, उसकी पहचान के बगैर समस्या का स्थायी निदान संभव नहीं है.
दानव हमारे बीच, हमारे भीतर भी है. देव-दानव की संघर्ष-कथा पुरातन है. अब यह संघर्ष कम है. बाजार की अर्थ-व्यवस्था सब पर हावी है. तेजपाल व तहलका पत्रिका को उदारवादी वामपंथी दर्शन से जोड़ना गलत है. यह बड़ी चालाकी से वामपंथी दर्शन पर किया गया प्रहार है. इन दोनों को उदारवादी अर्थव्यवस्था से जोड़ने की आवश्यकता है. बाजार का अपना विचार-दर्शन है. जयपुर व गोवा में ही, जो मुख्यत: पर्यटन-स्थल है, साहित्योत्सव और विचारोत्सव क्यों होते हैं? दो वर्ष पहले गोवा के थिंक फेस्ट में वीएस नॉयपाल भी उपस्थित थे, जिन्होंने तेजपाल के पहले उपन्यास अलकेमी ऑफ डिजायर (2005) की प्रशंसा की थी. दो वर्ष पहले थिंक फेस्ट के दौरान तेजपाल ने आयोजन में भाग लेनेवालों को मौज-मस्ती करने और पसंदीदा के साथ हमविस्तर होने को कहा था. ऐसे बड़े आयोजन या उत्सव विचार और नैतिकता से कोसों दूर रहते हैं. सब कुछ बाजार के अधीन होता है. उपभोग और विलास की संस्कृति का नैतिकता से कोई संबंध नहीं होता. जो पूंजी देश में प्रवाहित हो रही है, वह हमारे मानस को भी बदल रही है. इस पूंजी का वास्तविक चेहरा जिस तरह दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार उन बड़े लोगों के वास्तविक चेहरे भी हमें नहीं दिखाई देते, जो समाज में शीर्ष पर हैं.
यह संयोग नहीं है कि तेजपाल ने पांच सितारा होटल के लिफ्ट में अपने सहकर्मी पत्रकार से गंदी हरकतें कीं और जस्टिस गांगुली ने अपनी प्रशिक्षु के साथ होटल के कमरे में गलत व्यवहार किया. आसाराम बापू के यहां भी सुविधाएं किसी होटल से कम नहीं थीं. अपने-अपने क्षेत्र के प्रभावशाली और शक्तिशाली लोगों के आचरण ऐसे क्यों हैं? गोवा के ‘थिंक फेस्ट’ में हॉलीवुड के लीजेंड राबर्ट डी नीरो, न्यूजवीक और न्यू यार्कर के पूर्व संपादक कट्रीना ब्राउन, इतिहासकार डेविड प्रीस्टलैंड और अमिताभ बच्चन एक साथ उपस्थित थे. इस आयोजन में तालिबान के सहसंस्थापक भी आमंत्रित थे. अपने-अपने क्षेत्र के मशहूर व्यक्तियों के एक साथ जमावड़े के पीछे केवल बाजार की शक्ति काम करती है.
हिप्पोक्रेसी-बुद्धिजीवियों में कम नहीं है. बाजार की गिरफ्त में सब हैं और बाजार का नैतिकता से कोई संबंध नहीं है. यौन-शोषण व उत्पीड़न का संबंध मानवीय-सामाजिक और नैतिक मूल्यों के ह्रास से है. बाजार उत्सव को बढ़ावा देता है. इसने नैतिक-सामाजिक मूल्य नष्ट कर दिये गये हैं. पिछले दो दशक में यौन-अपराध, यौन-शोषण बढ़े हैं. गांधी ने हिंद स्वराज में पूंजीवादी सभ्यता को ‘शैतानी सभ्यता’ कहा था. सौ वर्ष बाद अब यह शैतान चारों ओर मौजूद है. हमारे भीतर भी. व्यक्ति दोषी है, पर समस्या की जड़ें गहरी हैं. सत्ता, शक्ति, वर्चस्व, पूंजी द्वंद्व – सबने मिल कर जो विकृतियां पैदा की हैं, भीतर के शैतान को जितना मजबूत बनाया है, उससे लड़ाई किसी एक स्तर पर नहीं लड़ी जा सकती. गांगुली, आसाराम और तेजपाल एक उदाहरण हैं.