सारा दोष युवाओं पर ही क्यों?

हम अखबार में भी पढ़ते हैं और बराबर सुनते रहते हैं कि कत्ल, चोरी, अपराध आजकल हर जगह हो रहा है. हम दु:ख भरी आहें भरते हैं और कहते हैं कि युवा पीढ़ी के भटकने से अब तो इन जुर्मो का दौर चल पड़ा है. इन सबका अंत कहां होगा? क्या हम कम दोषी हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2013 4:48 AM

हम अखबार में भी पढ़ते हैं और बराबर सुनते रहते हैं कि कत्ल, चोरी, अपराध आजकल हर जगह हो रहा है. हम दु:ख भरी आहें भरते हैं और कहते हैं कि युवा पीढ़ी के भटकने से अब तो इन जुर्मो का दौर चल पड़ा है.

इन सबका अंत कहां होगा? क्या हम कम दोषी हैं जिन्होंने अपनी आनेवाली पीढ़ी के रास्ते को मुश्किल बनाया और उन्हें भटकने के लिए छोड़ दिया? जैसे कि खुला पैसा, फालतू समय, अश्लील और हिंसक फिल्में समाज में फलने-फूलने दी.

तब अपने फायदों के लिए कर्तव्यों और जिम्मेवारियों से मुंह मोड़नेवाले युवकों को हम देश में पाप तथा अपराध फैलाने से कैसे मना कर सकते हैं और उनको ही इस बात के लिए दोषी कैसे ठहरा सकते हैं? उन पर दोष मढ़ने के बजाय, हमें उन वजहों में अपनी भूमिका तलाशनी चाहिए जिससे परिस्थितियां ऐसी हुईं.

मनीष वैद्य, रांची

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