तमिलनाडु से सीखें
हमारा देश ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की त्रासदी से अकसर दो-चार होता रहता है. बाढ़, सूखा, भूकंप आदि की तबाही के बाद सरकारें राहत एवं पुनर्वास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती हैं. लेकिन, दुर्भाग्य से ऐसी अनेक घोषणाएं भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ जाती हैं. इस पृष्ठभूमि के बरक्स बीते दिसंबर में भारी बारिश और बाढ़ […]
हमारा देश ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की त्रासदी से अकसर दो-चार होता रहता है. बाढ़, सूखा, भूकंप आदि की तबाही के बाद सरकारें राहत एवं पुनर्वास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती हैं. लेकिन, दुर्भाग्य से ऐसी अनेक घोषणाएं भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ जाती हैं.
इस पृष्ठभूमि के बरक्स बीते दिसंबर में भारी बारिश और बाढ़ से बरबाद चेन्नई समेत तमिलनाडु के चार जिलों में मुआवजा बांटने में राज्य सरकार ने जो पारदर्शिता और कुशलता दिखायी है, वह अन्य सरकारों के लिए नजीर है. राज्य सरकार साढ़े 25 लाख प्रभावित परिवारों को मुआवजा राशि दे चुकी है. मुआवजे की पीड़ितों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए यह राशि उनके बैंक खातों में डाली गयी है. इससे गबन और गड़बड़ी की शिकायतें नहीं मिलीं.
इस सफलता को इससे भी समझा जा सकता है कि अत्यधिक राजनीतिक ध्रुवीकरण वाले इस राज्य की विपक्षी पार्टियों ने भी इसकी सराहना की है. अब इसकी तुलना कुछ अन्य राज्यों के राहत कार्यों से करें. उत्तराखंड में बाढ़ की विभीषिका के दो वर्ष बाद भी 437 मृतकों के परिवार मुआवजे का इंतजार ही कर रहे हैं. 417 मृतकों के मृत्यु प्रमाणपत्र भी अब तक निर्गत नहीं किये गये हैं.
अभी 77.75 फीसदी लाभार्थियों को पांच लाख की घोषित रकम की पहली किस्त के रूप में डेढ़ लाख रुपये दिये गये हैं. इन तथ्यों को संसद की स्थायी समिति ने भी बड़ी चिंता के साथ दर्ज किया है. बुंदेलखंड में सूखे से राहत के लिए आवंटित राशि का बड़ा हिस्सा गांवों में पहुंचने के बजाय ठेकेदारों की जेब में चला गया. किसानों को न तो फसल-बीमा की राशि ठीक से मिली, न ही आत्महत्या करनेवाले किसानों को मुआवजा मिल पाया है. उधर, 2014 में भयावह बाढ़ की चपेट में आये कश्मीर के अनेक किसानों को मात्र 32 से 113 रुपये का मुआवजा हासिल हुआ.
हाल के वर्षों में बिहार, असम और आंध्र प्रदेश से भी बाढ़ राहत में अनियमितताओं की खबरें आ चुकी हैं. दूसरी ओर, तमिलनाडु में बाढ़ प्रभावितों के लिए किये गये प्रयासों की केंद्रीय टीम ने भी सराहना की है. आपदाएं कभी भी और कहीं भी आ सकती हैं. लेकिन, तमिलनाडु ने दिखाया है कि सरकारें पीड़ितों को मदद पहुंचाने और बचाव की तैयारी बेहतर तरीके कर सकती हैं.
हालांकि, तमिलनाडु में बैंकिंग प्रणाली की अधिक पहुंच के कारण भी मुआवजा बांटने में सुविधा हुई है. लेकिन, सबसे जरूरी है इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और पारदर्शी प्रशासन. उम्मीद है कि देश की अन्य सरकारें तमिलनाडु से प्रेरित होकर जरूरतमंदों की मदद की समुचित व्यवस्था करने के लिए प्रयासरत होंगी.