डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
सरकार गंगा को निर्मल बनाना चाहती है. ‘निर्मल’ का अर्थ हुआ कि पानी शुद्ध है. शुद्धता बहाव से आती है. जैसे ठहरा हुआ पानी एक सप्ताह बाद सड़ने लगता है, लेकिन फुहारे से नाचता पानी शुद्ध रहता है, यह बात नदियों की निर्मलता पर भी लागू होती है. सरकार का प्रयास है कि गंगा के पानी को साफ कर दिया जाये. नगरपालिकाओं को सीवर प्लांट लगाने के लिए धन आवंटित किया जा रहा है.
उद्योगों द्वारा प्रदूषित पानी को नदी में छोड़ने पर रोक लगायी जा रही है. परंतु, इन सबसे गंगा साफ नहीं होगी. जैसे पतीले में रखे पानी में ब्लीचिंग पाउडर डालने से पानी साफ दिखता है, पर उसमें दुर्गंध आती है. गंगा को अविरल बनाये बिना उसे निर्मल बनाना कठिन होगा.
आज बिजली के लिए टिहरी एवं चीला, सिंचाई के लिए बिजनौर तथा नरोरा, एवं नेवीगेशन के लिए फरक्का में बराज बनाये जा चुके हैं. नदी के पानी की स्वच्छता उसमें पल रहे प्राकृतिक जीव-जंतुओं से स्थापित होती है. बराज बनाने से मछलियों पर दुष्प्रभाव पड़ता है. मछली अपने प्रजनन क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाती है. बांग्लादेश से आनेवाली हिल्सा मछली फरक्का बराज को पार नहीं कर पाती है.
पहले यह मछली इलाहाबाद तक पायी जाती थी. नरोरा, हरिद्वार तथा ऋषिकेष में बराज बनाने से माहसीर मछली की साइज छोटी होती जा रही है. मछली के क्षरण का अर्थ है कि अन्य छोटे जलीय जीव-जंतुओं का क्षरण हो रहा है, जो मछली का भोजन होते हैं. ये जीव-जंतु ही जल के प्रदूषण को खाकर नदी के जल को निर्मल बनाते हैं.
यही कारण है कि तमाम तीर्थस्थानों पर नदियों में बड़ी मछलियों को तैरते देखा जा सकता है. बहते पानी द्वारा हवा से आॅक्सीजन सोखी जाती है. जल की गुणवत्ता नापने का एक प्रमुख मानदंड डिजाल्व्ड आॅक्सीजन है. पानी में आॅक्सीजन की मात्रा पर्याप्त होने से उसमें मछली जैसे जलीय जीव पनपते हैं. ठहरे पानी में आॅक्सीजन कम हो जाती है और जीव मरने लगते हैं. गंगा को निर्मल बनाने के लिए जरूरी है कि जलीय जीव प्रचुर संख्या में जीवित रहें.
अविरलता खंडित करने का दूसरा दुष्प्रभाव गंगा द्वारा लायी जा रही मिट्टी पर पड़ता है. गंगा की मिट्टी के विशेष गुण है. नागपुर स्थित नेशनल इनवायरमेंट इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने टिहरी बांध का गंगा के पानी की गुणवत्ता पर अध्ययन किया है.
नीरी ने पाया कि गंगा मे विशेष प्रकार के लाभप्रद कीटाणु होते हैं, जिन्हें कालीफाज कहा जाता है. गंगा के कालीफाज में विशेषता है कि एक प्रकार का कालीफाज कई प्रकार के हानिकारक कालीफार्म को खा लेता है. इन्हें खाकर कालीफाज गंगा के पानी को स्वच्छ कर देते है.
दूसरी नदियों में इस प्रकार के कालीफाज नहीं पाये जाते हैं. कालीफाज का ‘घर’ गंगा की मिट्टी होता है. मैदानी क्षेत्रों में गंगा के पानी को निर्मल बनाये रखने के लिए जरूरी है कि कालीफाज युक्त मिट्टी पर्याप्त मात्रा में नीचे आये. यह कालीफाज युक्त मिट्टी बांधों के पीछे कैद हो जाती है या बराजों से निकाल कर खेतों को पहुंचा दी जाती है. इसलिए आज गंगा स्वयं अपने को स्वच्छ नहीं कर पा रही है.
निर्मलता और अविरलता में चोली-दामन का साथ है. योगी बताते हैं कि गंगा के किनारे ध्यान आसानी से लग जाता है. महर्षि अरविंद जैसे मनीषियों की मानें, तो विश्व में भारत का योगदान अाध्यात्मिक है.
अतः गंगा की आध्यात्मिक शक्ति की रक्षा करनी होगी. हमें गंगा की अद्भुत सेल्फ प्यूरिफाइंग तथा आध्यात्मिक शक्तियों को बचाये रखते हुए आर्थिक विकास हासिल करना चाहिए. इन शक्तियों का संरक्षण अविरलता बनाये रखने से ही होगा. सरकार की दृष्टि गंगा-स्वच्छता के साथ-साथ गंगा की अविरलता पर भी होनी चाहिए. गंगा को निर्मल बनाने के लिए बांध और बराजों को हटाने का संकल्प करना करना चाहिए.
टिहरी बांध को हटा दिया जाये और डूब क्षेत्र की रिक्लेम्ड भूमि पर सौर उर्जा पैनल लगा दिये जायें, तो बिजली भी मिलेगी और अविरल गंगा भी मिलेगी. दिल्ली को पीने का पानी और उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा को सिंचाई उपलब्ध कराने के लिए वर्षा के जल से भूमिगत एक्वीफरों का पुनर्भरण किया जा सकता है.
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के अनुसार, केवल उत्तर प्रदेश के एक्वीफरों में 76 अरब घन मीटर पानी का संचय किया जा सकता है, जो टिहरी बांध की 2.6 अरब घन मीटर की क्षमता से तीस गुना है. उत्तर प्रदेश में सिंचाई के लिए बिजनौर तथा नरौरा में गंगा पर बराज बनाये गये हैं.
नदी के पाट पर आर-पार बराज बनाने के बजाय एक तरफ अवरोध बना कर पानी निकाला जा सकता है. ऐसे में नदी के शेष पाट पर अविरल प्रवाह बना रहेगा, जल की शुद्धता कायम रहेगी. पहले जमुना पर ऐसे ही एकतरफा अवरोध बना कर पानी निकाला जाता था. गंगा को अविरल बनाना होगा. तभी गंगा निर्मल होगी.