बदला-बदला पाक!
धूप कायदे से निकली भी नहीं, कि बदली छा जाती है. भारत-पाकिस्तान संबंधों की यही कहानी एक अरसे से रही है. दोनों देश की सरकारें यह कोशिश करती हैं कि आपस में सद्भाव कायम हो और इतिहास की कटुता को भूल कर 21वीं सदी में नये सिरे से संबंधों की किताब लिखी जाये. लेकिन, कोशिशों […]
धूप कायदे से निकली भी नहीं, कि बदली छा जाती है. भारत-पाकिस्तान संबंधों की यही कहानी एक अरसे से रही है. दोनों देश की सरकारें यह कोशिश करती हैं कि आपस में सद्भाव कायम हो और इतिहास की कटुता को भूल कर 21वीं सदी में नये सिरे से संबंधों की किताब लिखी जाये.
लेकिन, कोशिशों पर पानी फेरने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं पर कायम आतंकी धड़े सक्रिय हो जाते हैं. पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला भी प्रधानमंत्री मोदी की आकस्मिक लाहौर यात्रा से बने सद्भाव के वातावरण में जहर घोलने के लिए ही था. लेकिन, इस बार पाक सरकार ने पहले की तरह शुतुरमुर्गी रवैया नहीं अपनाया. कम से कम आधिकारिक तौर पर पाक सरकार या सेना की तरफ से यह नहीं कहा गया कि पठानकोट हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है. वह चाहे भारत की अपेक्षा पर खरा उतरने की मंशा हो या अमेरिकी दबाव का असर, इस बार नवाज शरीफ सरकार ने आतंकी हमले के प्रति संवेदनशील होने के संकेत दिये हैं.
भारत सरकार ने पठानकोट हमले को लेकर सबूतों से संबंधित दस्तावेज सौंपे, तो शरीफ ने इसे लेने और विचार करने पर ऐतराज नहीं जताया. यह अलग बात है कि पाकिस्तान ने पहले की ही तरह कहा है कि सौंपे गये सबूत, खासकर आतंकवादियों को मिल रहे निर्देश से संबंधित मोबाइल नंबर, पाकिस्तान के नहीं हैं. परंतु, पाक सरकार ने सौंपे गये सबूतों के आधार पर कुछ संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.
साथ ही आइबी, आइएसआइ, मिलिट्री इंटेलिजेंस, एफआइए और पुलिस की एक संयुक्त टीम मामले की जांच के लिए गठित की गयी है. यह पहल निश्चित ही जनरल मुशर्रफ या फिर आसिफ अली जरदारी के वक्त से अलग है. मुशर्रफ के वक्त में पाक सरकार आगरा में दोस्ती के लिए हाथ मिलाती दिखती थी, तो कश्मीर में ‘ब्लीड इंडिया थाउजेंड टाइम्स’ की नीति पर चलते हुए. जरदारी ने तो मुंबई हमले के बाद कहा था कि पाकिस्तान की धरती पर सक्रिय आतंकी धड़े ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ हैं और उन पर हमारा कोई अख्तियार नहीं है.
इस बार पाकिस्तान कम-से-कम मुशर्रफ की तरह दोमुंहेपन या फिर जरदारी की तरह उपेक्षा-भाव से काम नहीं ले रहा. हां, पाकिस्तान को अब सुनिश्चित करना चाहिए कि पठानकोट हमले के अपराधियों की धर-पकड़ या जांच दिखावे के लिए नहीं है, जैसा कि पहले जकी-उर-रहमान लखवी के मामले में हुआ. अगर पाकिस्तान पठानकोट हमले के अपराधियों को सजा देने या उन्हें भारत को सौंपने के लिए तैयार होता है, तो इसे भारत-पाक सबंधों में बेहतरी की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जायेगा.