नारी सशक्तिकरण : समय की मांग
हमारा समाज मूल रूप से पुरुष प्रधान रहा है. पहले महिलाओं के पास किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता ना होने के कारण उनकी सामाजिक व पारिवारिक स्थिति एक पराश्रित से अधिक नहीं थी, जिसे हर कदम पर एक पुरुष के सहारे की जरूरत होती थी. वैसे तो आजादी के बाद से ही महिला उत्थान के […]
हमारा समाज मूल रूप से पुरुष प्रधान रहा है. पहले महिलाओं के पास किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता ना होने के कारण उनकी सामाजिक व पारिवारिक स्थिति एक पराश्रित से अधिक नहीं थी, जिसे हर कदम पर एक पुरुष के सहारे की जरूरत होती थी.
वैसे तो आजादी के बाद से ही महिला उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न प्रयास किये जाते रहे हैं. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण की बयार में तेजी आयी है. इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप महिलाओं के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हुई है. वे किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार करने लगी हैं.
एक ओर जहां केंद्र व राज्यों की सरकारें महिला उत्थान की नयी-नयी योजनाएं बनाने लगी हैं, वहीं कई गैर-सरकारी संगठन भी उनके अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं. महिलाओं में ऐसी प्रबल भावना को उजागर करने का प्रयास भी किया जा रहा है कि वह भीतर छिपी ताकत को सामने ला कर, बिना किसी सहारे के आनेवाली हर चुनौती का सामना कर सकें. हमारा पुरुष प्रधान समाज जिन संस्कारों, परंपराओं व मर्यादाओं की दुहाई देकर महिलाओं को अपने निर्मित दायरे में रखना चाहता हैं, पुरुष द्वारा उन्हीं सीमाओं का अतिक्रमण नयी बात नहीं है.
हम भले ही खुद को आधुनिक कहने लगे हों, लेकिन यह सच है कि आधुनिकता केवल पहनावे व व्यवहार में आयी है. लेकिन, चरित्र व विचारों से अब भी हमारा समाज व लोग पिछड़े हुए हैं. पुरुष वर्ग महिलाओं को आज भी वस्तु की भांति अधीन रखना चाहता है. आज महिलाएं घर से लेकर सफल व्यवसायी की भूमिका को सहज ढंग से निभा रही हैं.
अगर वह खुद की छिपी ताकत पहचान कर पृथक व स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण का प्रयास करती हैं, तो वह पुरुषों से बेहतर भी हो सकती हैं. आधुनिक युग की महिलाएं पुरुष के समकक्ष ही नहीं, कई क्षेत्रों में तो पुरुष के वर्चस्व को भी चुनौती दे रही हैं. जरूरत है हमें संयुक्त रूप से नारी सशक्तिकरण के प्रति आवाज उठाने की.
– आदित्य शर्मा, दुमका