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नशाखोरी और दहेज से टूटता समाज
भारतीय समाज में वर्षों से व्याप्त नशाखोरी व दहेज क्या है. इसकी शुरुआत कब, कैसे और क्यों हुई? क्या हमने सामूहिक रूप से इस अहम मुद्दे पर कभी सोचने या चिंतन करने की जरूरत समझी है? ऐसा लगता है कि अभी तक नशाबंदी और दहेज उन्मूलन पर गंभीरता से बहुत कम सोचा गया है. सोच […]
भारतीय समाज में वर्षों से व्याप्त नशाखोरी व दहेज क्या है. इसकी शुरुआत कब, कैसे और क्यों हुई? क्या हमने सामूहिक रूप से इस अहम मुद्दे पर कभी सोचने या चिंतन करने की जरूरत समझी है? ऐसा लगता है कि अभी तक नशाबंदी और दहेज उन्मूलन पर गंभीरता से बहुत कम सोचा गया है. सोच कर देखें कि आज नशे की लत क्यों हावी होती जा रही है.
गंभीरता से यह सोचने की जरूरत है िक आखिर वजह क्या है कि हम कुछ नहीं कर पा रहे अौर पुरुषों-महिलाओं, किशोर और नौजवान पीढ़ी को गर्त में जाते हुए देख रहे हैं? आज दहेज जैसी कुप्रथा के कारण बेमेल शादियों का प्रचलन बढ़ा है. दूसरी अोर, बहुओं के साथ मारपीट, प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए विवश करने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. आज दहेज व नशे के कारण हजारों परिवार टूट रहे हैं. बिखर रहे हैं.
याद रहे तंबाकू और शराब के सेवन से भारत में हर साल करीब दस लाख लोगों की जान चली जाती है. इससे होनेवाले रोगों के कारण देश का डेढ़ लाख करोड़ रुपया इलाज व अन्य के नाम पर सालाना बरबाद हो जाता है. सबसे दुखद यह कि महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध और अत्याचार का अधिकतर कारण नशाखोरी और दहेज है. जरूरत है आत्ममंथन करने की. हर सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए समाज के लोगों को ही पहल करनी होती है.
आज समाज के लोगों को सृजनात्मक आंदोलन की जरूरत है, ताकि नशाखोरी और दहेज जैसी कुप्रथा की अंधी गली में खो रहे लोगों को सही राह दिखाया जा सके. यह भी सही है िक सरकारी अौर गैर सरकारी संस्थाएं भी इस काम में लगी हैं, उनके कार्यकर्ता गांवों में जाकर लोगों से मिल रहे हैं. शहर में भी बता रहे, पर जब तक आम जनता इस दिशा में आगे नहीं आयेगी, कुछ नहीं होगा. आयें खुद के संबंध में सोचे अौर समाज को सही रास्ते पर ले चलें, तभी सही मायने में समाज सुधरेगा.
– लतीफ अंसारी, गोड्डा
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