शर्मा जी को लूट लिया टोपीवालों ने

(रजनीश आनंद) (प्रभात खबर.कॉम) कल शाम महीनों बाद मेरे मित्र शर्मा जी ने दर्शन दिये. उन्हें देखते ही मैं चहक उठी, ‘‘अरे जनाब, ईद का चांद हो गये आप तो.’’ मेरी गर्मजोशी को दरकिनार करते हुए शर्मा जी ने लंबी सांस ली और सोफे पर बैठ गये. अनिष्ट की आशंका से मैं घबरा गयी. पानी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2013 5:21 AM

(रजनीश आनंद)

(प्रभात खबर.कॉम)

कल शाम महीनों बाद मेरे मित्र शर्मा जी ने दर्शन दिये. उन्हें देखते ही मैं चहक उठी, ‘‘अरे जनाब, ईद का चांद हो गये आप तो.’’ मेरी गर्मजोशी को दरकिनार करते हुए शर्मा जी ने लंबी सांस ली और सोफे पर बैठ गये. अनिष्ट की आशंका से मैं घबरा गयी. पानी का गिलास लाकर शर्माजी को थमा दिया और सहानुभूति जताते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ शर्मा जी?’’ मेरी सहानुभूतिपूर्ण बातें सुन कर किसी तरह उनका बोल फूटा- ‘‘क्या बताऊं मोहतरमा, मेरे सपनों को तो मानो ग्रहण ही लग गया है. कहां मैंने सोचा था कि दिल्ली में मेरे अपने लोगों की सरकार वापस बनेगी, तो मेरे भी वारे-न्यारे हो जायेंगे.

वहां मैंने एक फ्लैट भी देख रहा था और सोचा था कि सरकार बनते ही वहां शिफ्ट कर जाऊंगा. रिटायरमेंट के बाद पार्टी के काम में जुट जाऊंगा और फिर पांच क्या दसों अंगुली घी में और सिर कड़ाही में वाली स्थिति होगी. लेकिन बुरा हो इन टोपीवालों का, न तो खुद चैन से रहते हैं और न दूसरों को रहने देते हैं. एक तो हमारी सरकार चली गयी और जब इनकी बारी आयी है, तो दोनों नाशपीटे यह कहते फिर रहे हैं कि हम सरकार ही नहीं बनायेंगे. सभी को विपक्ष में बैठने का शौक चर्राया है. अगर विपक्ष में बैठने का इतना ही शौक था, तो हमारी सरकार गिरायी ही क्यों भाई? 15 सालों से हम लोग दिल्ली को सही दिशा में ले जा रहे थे. हर तरफ मेट्रो रेल और फ्लाईओवर. यह समझिए कि विकास की गंगा बह रही थी.’’

मैंने कहा, लेकिन मंहगाई तो बहुत बढ़ गयी है. इस पर शर्मा जी फिर शुरू हो गये, ‘‘अरे, महंगाई का क्या है, आती-जाती रहती है, इसके लिए हमारी मैडम को जिम्मेदार ठहराने का कोई मतलब नहीं है. प्याज 100 रुपये किलो हो गया, तो आफत मचा दी. बिना प्याज के सब्जी नहीं बनती क्या? प्याज के लिए सरकार के खिलाफ वोट डालने का क्या मतलब? खैर, हमारी जो दुर्गति होनी थी, हो गयी. अब जब हम इनकी मदद करना चाह रहे हैं कि भाई ‘आप’ ही सरकार बना लो, हम समर्थन कर देंगे, वह भी बिना शर्त. तब भी ये नहीं मान रहे, ऐंठा रहे हैं- हमें किसी की मदद की जरूरत नहीं.

अरे, भाई हम कौन सी पूरी मलाई मांग रहे थे. सरकार को समर्थन देते, तो कुछ न कुछ रूखी-सूखी हमारे भी हिस्से आ ही जाती. ‘ब्रेड एंड बटर’ में से बटर आप खाते, हम ब्रेड से भी काम चला लेते. लेकिन नहीं, इन्हें हमारे सपने के टूटने का दर्द थोड़े ही न हो रहा है. इन्हें तो समाज सुधारने की पड़ी है. बिजली का कटा कनेक्शन जोड़नेवालों ने वो झटका दिया है कि अगले कुछ सालों तक हम उठने की स्थिति में नहीं हैं. पता नहीं लोकसभा चुनाव में हमारी क्या हालत हो? उस समय तो इन टोपीवालों के साथ-साथ ‘नमो’ से भी सावधान रहना होगा.’’बेचारे शर्मा जी की बातों को सुन कर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि सत्ता सुख भोगने का सपना इनका उसी प्रकार टूटा, जैसे दिल के अरमां आंसुओं में बह गये..

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