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शिक्षा का अधिकार बनाम पारा शिक्षक

राज्य के पारा शिक्षकों को एक बार फिर से राजधानी की सड़कों पर देख कर ऐसा लगता है कि राज्य के ग्रामीण नौनिहालों को शायद ही कभी उनका अधिकार मिल पायेगा. पारा शिक्षकों के रवैये से सवाल उठता है कि क्या उनकी मांग जायज है. यदि हां, तो सरकार उसे क्यों नहीं पूरा करती है? […]

राज्य के पारा शिक्षकों को एक बार फिर से राजधानी की सड़कों पर देख कर ऐसा लगता है कि राज्य के ग्रामीण नौनिहालों को शायद ही कभी उनका अधिकार मिल पायेगा. पारा शिक्षकों के रवैये से सवाल उठता है कि क्या उनकी मांग जायज है. यदि हां, तो सरकार उसे क्यों नहीं पूरा करती है?
और यदि नहीं, तो क्यों नहीं उन पर उचित कार्रवाई होती? प्रश्न पर विचार से पूर्व स्पष्ट हो जाये कि पारा शिक्षकों की नियुक्ति तब हुई, जब केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 21(a) में संशोधन करते हुए राज्य सरकार के विद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात को ठीक करते हुए प्राथमिक शिक्षा के िलए ग्राम शिक्षा समिति गठित की.
उस समय इनका मानदेय 1000 रुपये था, जो स्थायी शिक्षकों के वेतन का लगभग 1/7 भाग था. यह अनुपात आज भी है. एक साल के लिए अनुबंधित होने की नियुक्ति शर्त पूरी होने के बाद एक-दो बार तो उनको फिर से सेवा विस्तार दिया गया, पर बाद में न तो सेवा विस्तार हुआ और न ही सेवा समाप्त की गयी. इससे वो असमंजस में हैं.
– बाबूचंद साव, बोकारो

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