यूएस में भारतीय

शोध और अनुसंधान में दुनिया में अव्वल देश अमेरिका में विज्ञान के हर क्षेत्र में भारतीय अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों से उनकी संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है. वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों का जनांकिक अध्ययन करनेवाली संस्था नेशनल साइंस फाउंडेशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2013 में अमेरिका में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2016 2:01 AM

शोध और अनुसंधान में दुनिया में अव्वल देश अमेरिका में विज्ञान के हर क्षेत्र में भारतीय अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों से उनकी संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है.

वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों का जनांकिक अध्ययन करनेवाली संस्था नेशनल साइंस फाउंडेशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2013 में अमेरिका में भारतीय मूल के विशेषज्ञों की संख्या 9,50,000 तक हो चुकी थी. दस वर्षों की अवधि (2003-2013) में इसमें 85 फीसदी की वृद्धि हुई है.

अमेरिका के करीब 29 मिलियन वैज्ञानिकों व इंजीनियरों में भारतीय मूल की प्रतिभाओं की हिस्सेदारी करीब 3.3 फीसदी है. निश्चित रूप से यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, पर साथ ही यह सूचना हम भारतीयों के लिए आत्ममंथन का भी जरूरी कारण होना चाहिए. प्यू रिसर्च सेंटर के 2012 के अध्ययन के अनुसार, 2010 में 87.2 फीसदी भारतीय-अमेरिकियों की पैदाइश बाहर हुई थी और इनमें से 37.6 फीसदी अमेरिका में 10 या कम वर्षों से रह रहे थे. वहां बसे भारतीयों में 56.2 फीसदी व्यस्क ही अमेरिकी नागरिक थे. जनगणना के अनुसार, मौजूदा सदी के पहले 12 सालों में भारतीय अमेरिकियों की संख्या 76 फीसदी बढ़ी है. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बीते कुछ वर्षों से भारत से प्रतिभा-पलायन में भारी वृद्धि हुई है. अमेरिका में अभी एक लाख से अधिक भारतीय छात्र अध्ययनरत हैं.

रुझानों के मुताबिक, ऐसे छात्रों में से अधिकतर वहीं रोजगार में संलग्न हो जाते हैं. ऐसे में हमें देश में शिक्षा, शोध और अनुसंधान के लिए उपलब्ध सुविधाओं को बेहतर बनाने की ओर ध्यान देने की जरूरत है. क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग्स में पिछले साल दुनिया के श्रेष्ठ 100 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय संस्थान जगह नहीं बना सका था. शिक्षा के स्तर में गिरावट जारी है, लेकिन शिक्षा पर खर्च घट रहा है.

पिछले केंद्रीय बजट में शिक्षा का आवंटन 82,771 करोड़ से घटा कर 69,074 करोड़ कर दिया गया था. जहां सरकारी संस्थानों का स्तर चिंता का विषय है, वहीं निजी क्षेत्र में दी जा रही महंगी शिक्षा की गुणवत्ता पर निगरानी की भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है.

ऐसी व्यवस्था से निकले शिक्षित युवकों की योग्यता सवालों के घेरे में है. रोजगार के सही अवसरों की भी कमी है. इस स्थिति में मेधा के पलायन को रोका भी नहीं जा सकता है. इस संदर्भ में सरकार और समाज को शिक्षा में पर्याप्त सुधारों का प्रयत्न करना चाहिए, अन्यथा देश की बेशकीमती बौद्धिक मेधा किसी अन्य देश की ओर रुख करती रहेगी तथा हम उनका लाभ उठाने से उत्तरोत्तर वंचित होते जायेंगे.

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