चरण छुआई में सब उल्टा-पुल्टा!

बंदे ने जब होश संभाला था, तो उसने अपने माता-पिता को उनके माता-पिता के चरण-स्पर्श करते देखा. देखा-देखी बंदा भी वैसा ही करने लगा. बंदा न हिंदू जाने और न मुसलिम-किरिस्तान. बड़े हैं, तो उनके भी पैर छूने हैं. माता-पिता ने तो बस इतना ही कहा, अच्छा बच्चा बन कर दिखाओ. चिट्ठी-पत्री लिखनी सीखी, तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 18, 2016 1:16 AM

बंदे ने जब होश संभाला था, तो उसने अपने माता-पिता को उनके माता-पिता के चरण-स्पर्श करते देखा. देखा-देखी बंदा भी वैसा ही करने लगा. बंदा न हिंदू जाने और न मुसलिम-किरिस्तान. बड़े हैं, तो उनके भी पैर छूने हैं. माता-पिता ने तो बस इतना ही कहा, अच्छा बच्चा बन कर दिखाओ. चिट्ठी-पत्री लिखनी सीखी, तो सर्वप्रथम चरण-स्पर्श लिखा. जब घर से बाहर दुनिया में कदम रखा, तो पता चला कि कौन हिंदू, कौन मुसलमान. हाथ यंत्रवत पांव छूने को बेताब. बंदे का यह जज्बा आज भी कायम है.

नयी पीढ़ी आ गयी है. अब दंडवत होकर चरण स्पर्श की प्रथा पुरानी पड़ चुकी है. तनिक दायां कंधा झुकाया. बस, हो गया प्रणाम. इधर मोगैंबो भी खुश हो गया. लेकिन इक्कीसवीं सदी के युग में दकियानूस अभी बहुत हैं. बंदा अपने मित्र के घर गया. बहू ने पैर छुए. सास-ससुर ने भी पैर आगे बढ़ा दिये. बेचारी सुबह से दसवीं बार यह कवायद कर चुकी है. कोख में बच्चा भी है. न-नुकुर करती है. सास आंखें तरेरती हुई लथाड़ती है. बहू हो बहू की तरह रहो.

बंदे के एक और दकियानूसी मित्र हैं. उनकी बहू के पिता का स्वर्गवास हुआ. बंदा भी अफसोस करने उनके साथ बहू के मायके चला गया. कुछ देर बाद चलना हुआ, लेकिन मित्र हिला नहीं. उल्टा बंदे का हाथ पकड़ कर बैठा लिया. और वह तब हिला जब दुपट्टे से आंसू पोंछती बहू महिला कक्ष से बाहर आयी और दंडवत होकर विधिवत वंदना की. मित्र उठे. बहू की ओर देखा तक नहीं. आशीर्वाद भी नहीं दिया. और चल दिये. बंदे ने मित्र को हजार गालियां सुनायीं. कम-से-कम यह तो देखा लिया होता कि बहू के पिता का स्वर्गवास हुआ है. बेचारी शोक में है. मगर मित्र हंसते रहे. तुम ज्यादा पढ़े-लिखे लोग संस्कार नहीं समझोगे. यह हमारे समाज की संस्कृति है, रिवाज है. चाहे दुख हो या सुख इन्हें निभाना तो पड़ेगा.

यह चरण-छुआई की रस्म दफ्तरों में भी भरपूर पायी जाती है. प्रशासनिक सीट पर तैनात बंदे का अधिकारी मित्र तो बाकायदा जूते-मोजे उतार इस अंदाज में बैठता है कि चारण-भक्तों को तकलीफ न हो और वे भी बदस्तूर अपना काम करता रहे.

चरण स्पर्श बड़ों को आदर देने का सूचक है, सुंदर भाव है. इसमें कोई बुराई नहीं. लेकिन, आज सब उल्टा-पुल्टा हो रहा है. व्यक्ति का कद छोटा और पद का कद बड़ा हो गया है. छोटे के पांव बड़ा छू रहा है! स्पष्टीकरण साथ चलता है. अरे, तो क्या हुआ? काम कराना है तो यह करना ही होगा. चार एक्स्ट्रा लीव मिल गयी और दिल्ली का टूर भी. तुम समझो इसे चापलूसी. चरण स्पर्श की पवित्रता नष्ट होती है तो होने दो. तुम बैठो यहीं और गधे की तरह काम करो.

चारण-भक्ति करते हुए फोटो खिंचवाना भक्तगण का नया शौक है. दाढ़ी बढ़ा कर तीस साल का बंदा ज्ञानी बाबा हो रहा है और सिक्स्टी प्लस वाला अज्ञानी बाबाजी के पांव छू रहा है. हर-हर बाबा. हर-हर राधा. संख्या बढ़ती ही जा रही है. चरण स्पर्श की सुंदर अवधारणा नष्ट हो रही है.

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

Next Article

Exit mobile version